दिलों दिमाग़ का बोझ

दिलों दिमाग़ का बोझ

जब तन तक उतर आए …..

जिस्म को उदास , मायूस बीमार बनाए .

तब ज़रूरी है इसे ऊतार फेंकना.

वरना तन और मन दोनो

व्यथा …दर्द में डूब जाएँगे .

तराशे हुए शब्द

तराशे हुए शब्दों में जीवन की कहानी

कविता-नज़म बन जाती है।

अौर फिर लय में बँध संगीत बनती है।

दिल की पीड़ा

तरंगों-लहरों के साथ बहती

ना जाने कितने दिलों को

छूने लगती है।