दिल और आत्मा का दर्द

 

दिलों- दिमाग़ को दर्द जमा करने का कचरादान ना बनाओ.

खुल कर जीने के लिए दर्द को बहने देना ज़रूरी है –

बातों में, लेखन में …..

खुल कर हँसने के लिए खुल कर रोना भी ज़रूरी है,

ताकि दिल और आत्मा का दर्द आँसुओं में बह जाए.

दिलों दिमाग़ का बोझ

दिलों दिमाग़ का बोझ

जब तन तक उतर आए …..

जिस्म को उदास , मायूस बीमार बनाए .

तब ज़रूरी है इसे ऊतार फेंकना.

वरना तन और मन दोनो

व्यथा …दर्द में डूब जाएँगे .