Tag: थकान
गिनती बन कर रह गए!
श्रम के सैनिक निकल पड़े पैदल, बिना भय के बस एक आस के सहारे – घर पहुँचने के सपने के साथ. ना भोजन, ना पानी, सर पर चिलचिलाती धूप और रात में खुला आसमान और नभ से निहारता चाँद. पर उन अनाम मज़दूरों का क्या जो किसी दुर्घटना के शिकार हो गए. ट्रेन की पटरी पर, रास्ते की गाड़ियों के नीचे? या थकान ने जिनकी साँसें छीन लीं. जो कभी घर नहीं पहुँचें. बस समाचारों में गिनती बन कर रह गए.
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थकान
कभी कभी ज़िंदगी
से थकान होने लगती है .
चाहो कुछ
होता कुछ और है
ज़िंदगी ना जाने किस मुक़ाम पर
क्या रंग दिखाएगी ?
कब हँसाएगी कब रुलाएगी ?

थकान
कभी कभी ज़िंदगी
से थकान होने लगती है .
चाहो कुछ
होता कुछ और है
.ना जाने किस मुक़ाम पर
क्या रंग दिखाएगी ?
कब हँसाएगी कब रुलाएगी ?
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