किसका दर्द बड़ा ?

हवा में लहराती,

दुनिया रौशन करने की ख़ुशी से नाचती सुनहरी,

लाल नारंगी लौ क्या जाने,

बाती के जलने का दर्द।

जलती बाती क्या जाने गर्म-तपते तेल की जलन?

ना लौ, ना बाती, ना तेल जाने

दीये के एक रात की कहानी।

जल-तप दूसरों को रौशन करती,

अपने तले हीं अंधकार में डूबा छोड़।

पता नहीं किसका दर्द बड़ा ?

पर सब जल-तप करते रहते हैं रौशन राहें।

हौसला

तेल खत्म होते दिये की धीमी लौ की पलकें झपकने लगी,

हवा के झोंके से लौ लहराया

अौर फिर

पूरी ताकत से जलने की कोशिश में……

 धधका …..तेज़ जला…. अौर आँखें बंद कर ली।

बस रह गई धुँए की उठती लकीरें अौर पीछे की दीवार पर कालिख के दाग।

तभी पूरब से सूरज की पहली किरण झाँकीं।

शायद दीप के हौसले को सलाम करती सी।