
घर के छत की ढलाई
के लिए लगे बल्ले, बाँस
और लकड़ियों के तख़्ते ने
बिखरे रेत-सीमेंट को
देख कर कहा –
हम ना हो तो तुम्हें
सहारा दे मकान का
छत कौन बनाएगा?
कुछ दिनों के बाद
मज़बूत बन चुका छत
बिन सहारा तना था।
और ज़मीन पर बिखरे थे
कुछ समय पहले
के अहंकार में डूबे बाँस,
बल्ले और तख़्तियाँ।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग दिखाती है ।