
तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।

तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।
टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.