जेलोटोलॉजी या हँसी का विज्ञान

क्या आप जानते हैं, हँसी का मनोविज्ञान या विज्ञान होता है। हँसी के  शरीर पर होने वाले प्रभाव को ‘जेलोटोलॉजी’ कहते हैं।

क्या आपने कभी गौर किया है, हँसी संक्रामक या इनफेक्शंस होती है। एक दूसरे को हँसते देखकर ज्यादा हँसी आती है। बच्चे सबसे अधिक हँसते हैं और महिलाएं पुरुषों से अधिक हँसती हैं। हम सभी बोलने से पहले अपने आप हँसना सीखते हैं। दिलचस्प बात है कि हँसने की भाषा नहीं होती है। हँसी खून के बहाव को बढ़ाती है। हम सब लगभग एक तरह से हँसते हैं।

मजे की बात है कि जब हम हँसते हैं, साथ में गुस्सा नहीं कर सकते । हँसी तनाव कम करती है। हँसी काफी कैलोरी भी जलाती है। हँसी एक अच्छा व्यायाम है। आजकल हँसी थेरेपी, योग और ध्यान द्वारा उपचार भी किया जाता है। डायबिटीज, रक्त प्रवाह, इम्यून सिस्टम, एंग्जायटी, तनाव कम करने, नींद, दिल के उपचार में यह फायदेमंद साबित हुआ हैं। हँसी स्वाभिक तौर पर दर्दनिवारक या पेनकिलर का काम भी करती है।

हमेशा हँसते- हँसाते रहें! खुश रहें! सुरक्षित रहें!

 

 

जीवन के रंग – 36

शीतल हवा का झोंका बहता चला गया।

पेङो फूलों को सहलाता सभी को गले लगाता ……

हँस कर जंगल के फूलों ने कहा –

वाह !! क्या आजाद….खुशमिजाज….. जिंदगी है तुम्हारी।

पवन ने मुस्कुरा कर कहा –

क्या कभी हमें दरख्तों-ङालों,  खिङकियों-दरवाज़ों पर सर पटकते….

गुस्से मे तुफान बनते नहीं देता है?

हम सब एक सा जीवन जीते हैं।

गुस्सा- गुबार, हँसना-रोना , सुख-दुख,आशा-निराशा

यह सब तो हम सब के

रोज़ के जीवन का हिस्सा है!!!

हमारा गुस्सा – उपयोगी भी हो सकता है !!! ( एक विचार )

गुस्सा हम सभी में होता हैं. अक्सर हम गुस्सा करते  हैं।  अपने आस – पास हर दिन किसी ना किसी को नाराज़ होते देखते हैं।  यह स्वभाविक व्यवहार हैं।  कहते हैं, बड़े – बड़े ऋषि, मुनि, और विद्वान भी अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीँ रख पाये।

मन में जमे गुस्से के गुबार को बाहर  निकालना ज़रूरी हैं।  मन में भरी बातें अक्सर हम पर नाकारात्मक असर डालती है। पर  इस गुस्से को निकालने का तरीका और जगह ठीक होना चाहिए।  कुछ  लोग छोटी – छोटी बातों  से नाराज़ होते रहते  हैं।हर समय उनमें चिड़चिड़ापन रहता है। जिस से  उनकी नाराज़गी का प्रभाव कम हो जाता हैं।

लेकिन जब हम किसी ना नाराज़ होनेवाले को गुस्से  में देखते  हैं।  तब हम सब सकते में आ जाते हैं।  क्यों ?  क्योंकि जो कभी गुस्सा नहीँ करता, उसका गुस्सा हमें  मालुम नहीँ होता। जिस से उनका गुस्सा ज़्यादा प्रभावशाली बन  जाता हैं।   वैसे लोग  अपने गुस्से के असर का सही उपयोग करना जानते हैं। इसलिए हर छोटी-छोटी बात पर चिढ़ने और नाराज़ होने की आदत को नियंत्रित करना चाहिए। ताकि  सही समय पर और सही जगह पर गुस्सा कर उसे प्रभावशाली बनाया जा सके।

क्रोध को   कला मान कर  सीखने की ज़रूरत हैं।  कौन जाने, शायद  कुछ समय में गुस्से /क्रोध/नाराज़गी  के मैनेजमेंट की पढ़ाई भी शुरू हो जाये।