चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.
नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.
ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.
फिर निकल आता है शाम का सितारा.
पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,
भीगीं आँखों के साथ.
चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.
नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.
ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.
फिर निकल आता है शाम का सितारा.
पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,
भीगीं आँखों के साथ.