थोड़ी बहुत

इंसानों का यह हाल? बेटियाँ थीं ?

या नाजायज़ थे? भूल क्यों जातें हैं कि इंसान थे।

जब सीखा नहीं थोड़ी बहुत भी इंसानियत,

फिर क्यों जा रहें हैं मंगल और चाँद पर?

धरती हीं काफ़ी नहीं ऐसे मज़ाकों के लिए?

तय है मामले की तहक़ीक़ात के आदेश दिए जाएँगें।

सच्चाई सामने आएगी या बहानें?

जैसे – फ़र्मेंलिन में डूबे स्पेसिमेन।

या किसी निरीह को बकरा बनाएँगे?

समय भी शर्मिंदा होगा,

घड़ों में सौ कौरवों ने जन्म लिया,

आज नालों-बोतलों में जन्म से पहले मौत?

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