कुछ गुल खिले और बिखर गए !

कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए!
उसकी ख़ुशबुओं को ना पक़ड़,
वे फ़िज़ा में घुल गए। हम ना किसी के साथ आए थे, ना साथ किसी के जाएँगे।
ना साथ खिले थे, ना साथ मुरझाएँगे।

कुछ गुल खिले और बिखर गए!
ना भूल थी बयार की, ना भूल था नसीब का।
ना डाल दोष हवा पर, ना डाल दोष फुहार पर।
अख़्तियार ना था साँसों पर,
आग़ाह ना था मुस्तकबिल का… आने वाले समय का।

कुछ गुल खिले और बिखर गए!
फूलों की इक डाली थी।
हलकी सी लचकी,
और पंखुड़ियाँ बिखर गईं।
कई ज़िंदगियों इस जुंबिशें से बिखर गईं।

कुछ गुल खिले और बिखर गए!
कई पल बिना आवाज़, युगों से गुजर गए,
और हम बिखर गए।
ना पूछ बार बार, वो मंजर,
यादें फिर ले जातीं हैं उन्हीं ग़मों के समंदर।

कुछ गुल खिले और बिखर गए!
किसने सोचा था बहारें आई हैं, पतझड़ भी आएगा।
हम सँवरा करते, आईना सवाँरा करता था।
अब खुद हीं यादों-ख़्वाबों की दुकान सजाते हैं,
खुद हीं ख़रीदार बन जातें हैं।

कुछ गुल खिले और बिखर गए!
ज़िंदगी हिसाब है वफ़ाओं,
जफ़ाओं और ख़ताओं की।
जो सदायें गूंजती हैं, गूंजने दे।
फिर बहारें आएगी, गुलशन सजाएँगी।

कुछ गुल खिले और बिखर गए। आफ़ताब फिर आएगा, गुनगुनी धूप का चादर फैलाएगा।
जो बिखर गया, वो बिखर गया।
रंजों मलाल में ना डूब।
चलानी है कश्ती ज़िंदगी की।

कुछ गुल खिले और बिखर गए। ना ग़म कर, ना कम कर रौशनी अपनी,
ना बिखरने दे पंखुड़ियाँ अपनी,
फ़िज़ा में फैलने दे ख़ुशबू अपनी।
गुल खिलते हैं ख़ुशबू बिखेरने अपनी।

Photo by Dmitry Kharitonov on Pexels.com

मेरी कविता में गुलों की खुशबू, फूलों की डाली, उनका बिखरना जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में है। यादें, भावनाएँ और अनुभव अनमोल होती हैं। अक्सर दिल की कसक अंतरात्मा की गहराईयों से निकल लफ़्ज़ों में प्रतिबिम्ब हो कविता बन जातीं हैं। धैर्य और साहस से कठिनाइयों का सामना करना हीं जिंदगी है।जीवन-प्रवाह रुकता नहीं। किसी भी हादसे…चोट के बाद ख़ुद से, फिर से खुशियों खोजनी पङती है।मैंने 2018 में मेरे पति के निधन के बाद यह कविता लिखी थी। पहला ड्राफ्ट – 14.2.2021 पूरा किया था।

This poem was Written After the demise of my husband in 2018. First complete draft – 14.2.2021.

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