एक कविता

कुछ शब्दों को चुनते, उठाते

क्रम से सजाते ,

उसमें ना जाने कब

रंग ….रौशनी …चमक भर गई.

ख़ुशबू….यादें छलक आई ,

भावनाएँ और विचार समा गए .

देखा तो वह सामने थी एक –

कविता !!!!!

26 thoughts on “एक कविता

    1. Thank you Ashish, कविता शब्दों का खेल है . पर अक्सर यह मन के अंदर से अपने आप छलक पड़ता है .

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      1. शीर्षक क्या दूँ !
        मुझसे हुवी थी
        एक मूर्खतापूर्ण त्रुटि
        सुनने को मिला
        दिमाग में क्या गोबर भरा है ?
        सोचा अगर गोबर है
        तो क्यों ना
        उसका उपयोग करें
        फसल उगाने में
        क्यों ना
        तुक बंदी की बेल लगाऊं
        रात को उसमें
        डाले कुछ बीज
        अलफ़ाज़ों के
        कुछ नये एहसासों के
        फिर सींचा मैंने उनको
        मधुर स्मृति के जल से;
        संजोई तारीफ़ और
        प्रशंसा की गर्माहट पा
        प्रस्फुटि हो गई
        रंग बिरंगी कलियाँ
        प्रातः पड़ी उनपर
        जब भावों की धूप
        खिल उठी बन कर फूल
        बिखेरने लगीं
        अपना सौरभ चहुँ ओर
        मैंनेअपनी कलम रखी
        कॉपी बंद की
        कुर्सी से उठ
        बिस्तर पर लेटा
        तकिये पर सर रख
        सोचने लगा
        इस नई कविता का
        शीर्षक क्या दूँ !

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