साइलेंट मोड़

इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी में

उठते गिरते , बिखरते सिमटते चलते रहे.

अब एक दूरी है ,

जिसे तय नहीं कर सकते.

वहाँ तक पहुँचने के लिए .

अंदर के गूँज को सुनने के लिए मौन हैं

इसलिए ख़ामोश हैं.

इसमें हीं सुकून है.

पर कलम तो मौन नहीं है

17 thoughts on “साइलेंट मोड़

    1. शुक्रिया प्रव्या ( हिंदी में नाम सही लिखा है ना मैंने ?). बिलकुल मेरे दिल की बातें हैं, इस कविता में .

      Liked by 2 people

      1. Aa rekha ji bilkul sahi hai aise hi mera naam likhthe hai……
        Aapki dil ki baath apki kalm ki madhath se hamari dil thak pahunchi…… Likhthe rehna isi kalm ne apko ek din manzil ki akash par udayengi………

        Liked by 2 people

  1. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना।।

    अंदर के गूँज को सुनने के लिए मौन हैं

    इसलिए ख़ामोश हैं.

    इसमें हीं सुकून है.

    पर कलम तो मौन नहीं है।

    Liked by 2 people

Leave a reply to Rekha Sahay Cancel reply