
ज़िंदगी के सफ़र में तब क्या किया जाय,
जाने पहचाने जब अजनबी लगने लगते हैं.
लम्हे …..बरसों …..अरसे….
बिताने के बाद भी क्यों कोई अनजाना लगता हैं?
और किसी की कुछ हीं पल की बातें ,
अल्फ़ाज़ , शब्द अपने से लगते हैं.


ज़िंदगी के सफ़र में तब क्या किया जाय,
जाने पहचाने जब अजनबी लगने लगते हैं.
लम्हे …..बरसों …..अरसे….
बिताने के बाद भी क्यों कोई अनजाना लगता हैं?
और किसी की कुछ हीं पल की बातें ,
अल्फ़ाज़ , शब्द अपने से लगते हैं.

परिचित
कभी कभी मै सोंचता हूं।
मेरे परिचित कौन हैं?
वो जो मेरे पडोसी हैं
जो कभी दिखते नही
या वो जो मेरे दिल मे रहते हैं
पर कभी मिलते नही
कभी कोई अपरिचित मिल जाते हैं।
और लगता है
उनसे जन्मों का नाता है।
परिचित की क्या कोई परिभाषा है?
इसका तो दिल से नाता है।
छोडिए, इस विवाद मे क्या रक्खा है?
आपको कोई परिचित मिल जाये
तो हमे भी बताईए।
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मेरी कविता के जवाब में और भी प्यारी कविता रच डाली आपने .
परिचितों से तो हमारी दुनिया भरी पड़ी है . हाँ दुःख की घड़ी में कुछ शुभचिंतक परिचित मिल गए , जिन्होंने संभलने में मदद की है .
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Superb post!!
Do check my latest blogs 🙂
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परिचित
कभी कभी मै सोंचता हूं।
मेरे परिचित कौन हैं?
वो जो मेरे पडोसी हैं
जो कभी दिखते नही
या वो जो मेरे दिल मे रहते हैं
पर कभी मिलते नही
कभी कोई अपरिचित मिल जाते हैं।
और लगता है
उनसे जन्मों का नाता है।
परिचित की क्या कोई परिभाषा है?
इसका तो दिल से नाता है।
छोडिए, इस विवाद मे क्या रक्खा है?
आपको कोई परिचित मिल जाये
तो हमे भी बताईए।
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ख़ूबसूरत कविता . अपनापन दिखाने वाले परिचितों की भीड़ में अपनो की पहचान हुई – दुःख और परेशानी की घड़ी में .
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सोचने को मज़बूर करती बात I
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ज़िंदगी और अनुभव सोचने के लिए मजबूर करते हैं , तब ऐसी बातें बनती हैं और लिखी जातीं है.
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जब कोई अपना अजनबी-सा लगे
दिल लगाना भी दिल्लगी-सा लगे
मौत से क्या उसे डराओगे
जिसे मरना ही ज़िन्दगी-सा लगे
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बहुत ख़ूब !
आपने तो मेरे मन की बातों को शब्दों का रूप दे दिया . अब तो सचमुच मौत से भी डर नहीं लगता .
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ये किसकी लिखी पंक्तियाँ हैं जितेन्द्र जी? आपकी या किसी अौर की?
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यह पंकज उधास की एक मशहूर ग़ज़ल है रेखा जी ।
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खूबसूरत है। आपकी याददाश्त काबिले तारीफ़ है।
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