बरसात में बिन बोए भी
कुकुरमुते निकल आते है,
वैसे ही जैसे बिन बुलाए बरस जाते है बादल .
पहाड़ों में दी आवाज़ें भी
गूँज बन लौट आती है वापस.
फिर क्यों कभी – कभी ,
किसी किसी को बुलाने पर भी जवाब नहीं आता ?
कहाँ खो जाती है ये सदाये…… ये पुकार …… ये लोग ?

बरसात में बिन बोए भी
कुकुरमुते निकल आते है,
वैसे ही जैसे बिन बुलाए बरस जाते है बादल .
पहाड़ों में दी आवाज़ें भी
गूँज बन लौट आती है वापस.
फिर क्यों कभी – कभी ,
किसी किसी को बुलाने पर भी जवाब नहीं आता ?
कहाँ खो जाती है ये सदाये…… ये पुकार …… ये लोग ?
