सूर्य के उदय से अस्त होने के साथ घटती आयु,
जन्म, जरा, कष्ट, और मृत्यु को देखकर भी मनुष्य को भय नहीं होता।
आशा , तृष्णा, राग- द्वेष, तर्क-वितर्क, अधैर्य , अज्ञान-वृत्ति-दर्प-दम्भ रूपी भंवर
से पार पाना है कठिन ।
कायांत या शरीर का अंत, अंतअमरत्व स्वाभाविक अवस्था है……
अनश्वरता एक भूल है……..
जिजीविषा का संहार करने वाले काल है शाश्वत सत्य……..
यह सारा सत्य जान कर भी सभी
जगत के मोहरूपी मादक मदिरा में ङूब जाते हैं।
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Thank you 😊
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जिसने प्रातः आँखें खोलीं,
उसको नमन, प्रणाम ..
स्मृति – विस्मृति का स्वामी जो,
उसको नमन, प्रणाम ..
जिसने चलते रखा है ढाँचे में, प्राणों को अभिराम
उसको नमन प्रणाम ..
शाश्वत मिथ्या, सत्य शाश्वत ; में कर सकूँ विभेद
जिसने इतनी चेतना डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
होंगे तथ्य इतर बहुतेरे, परे समझ से मेरे
जिसने इतनी समझ भी डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
लाभ-हानि तज, उचित- अनुचित का, भान कराया जिसने मन को
उसे प्रणाम, नमन प्रणाम..
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अति उत्तम . आपकी यह रचना बहुत सुंदर है .
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Dhanyavad..
It’s a lovely feeling to be encouraged by someone whom I respect as a person, and admire as a writer, so immensely..
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Welcome Manish and thanks for your kind words.
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