जबान चुप थी पर आँखोँ हीं आँखों में बातें हुईं –
तङपते पतंगे ने कहा – मैंने जला दिया अपने-आप को,
जान दे दी
तेरी खातिर।
अश्क बहाती मोमबत्ती ने
कहा मैं ने भी तो तुम्हें
अपने दिल
अपनी लौ को चुमने की इजाजत दी।
जबान चुप थी पर आँखोँ हीं आँखों में बातें हुईं –
तङपते पतंगे ने कहा – मैंने जला दिया अपने-आप को,
जान दे दी
तेरी खातिर।
अश्क बहाती मोमबत्ती ने
कहा मैं ने भी तो तुम्हें
अपने दिल
अपनी लौ को चुमने की इजाजत दी।
Very nice mam
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Thank you !
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Welcome
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🙂
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KYA KEHNE BAHUT KHUB REKHA JI
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Dhanyvaad Danish. 🙂
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वाह बेहतरीन भाव।
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बहुत शुक्रिया।
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Loved the concept 👍🏻
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Thank you 🙂 Rohit.
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Thank you 🙂
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बड़ी मर्मस्पर्शी बात है यह रेखा जी । इसी संदर्भ में हरेकृष्ण प्रेमी जी का एक शेर है जिसकी गहराई को सच्चे प्रेमी ही समझ सकते हैं : ‘दीप की जलती जवानी है शलभ को प्राणप्रिय, प्राण देना एक चुंबन के लिए मंज़ूर है’ ।
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बहुत खूब!
पता नहीं यह दीप- पतंगे की प्रेम कल्पना कितनी लौकिक या आलौकिक है? पर मर्मस्पर्शी तो जरुर है अौर काव्य – कवियों के लिये प्रेरणादायक भी। 🙂
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Mam please read this poem http://bleedingthoughtsweb.com/2017/10/23/kuch-anmol-pal/😊
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ok, sure.
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अच्छा thought है
, इस पर मैं गीत लिख चुका हूं , भविष्य में आपको सुनने को जरूर मिलेगा
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धन्यवाद .
यह खुशी की बात हैँ . बधाई !
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आपके शब्दों का शुक्रगुजार करता हूँ
तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ
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स्वागत है आपका।
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हम सब साथी है उस नाव के
जो चलेगे दोनों की पतवार से
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बहुत ख़ूब !!!
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