मुम्बई की रिमझिम वर्षा की फुहारें
गंदलाये समुन्द्र की उठती पटकाती लहरे,
आसमान से नीचे झुक आये धुंध बने बादल ,
सीकते भुट्टो की सोंधी खुशबू
देख फुहारों में भीगने का दिल हो आया. …..
बाद में कहीँ नज़र आया
टपकती झोपड़ियों में भीगते ठिठुरते बच्चे ,
यह मेह किसी के लिये मजा और किसी की सजा है.
बाहर का बरसात, अंदर आँखो के रस्ते बरसने लगा.
Image from internet.
Bahut achchha likha….👌👌
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dhanyvaad madhusudan.
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आपने अपनी कविता से बहुत ही अच्छा से अपने भाव को बताया है।
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बहुत आभार रजनी जी 🙂
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Nicr
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thank you .
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Amazing….! Really wonderful lines are found
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thank you.
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True to life and touching sentiments!
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thanks dear.
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यह मेह किसी के लिये मजा और किसी की सजा है.
deep.
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धन्यवाद .
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बहुत खूब
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धन्यवाद .
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Bahut badhiya
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dhanyvaad 😊😊😊
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बेहतरीन..बाहर का बरसात अंदर आंखों के रास्ते बहने लगा…..
अभिव्यक्ति का कोई जवाब नहीं💐
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बहुत आभार अतुल। 🙂 मुझे तो लगता है कि कम हीं लोग कविता के पूरे भाव या मर्म पर विचार करते हैं। अभी से पहले किसी ने इन अंतिम पंक्तियों पर गौर नहीं किया था।
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व्यक्त न कर पाएं होंगे,वरन पढ़ना लिखना दोनो बिन सम्वेदना के सम्भव कहाँ👍
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हाँ, हो सकता है। पर अभिव्यक्ति का भी तो अपना मोल होता है अौर यहाँ /WP हम इससे हीं एक दूसरे की बातें समझ पाते हैं।
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सहमत💐
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