लिखती तो मैं पहले भी थी।
कभी कुछ छप जाता था,
तब खुश हो लेती थी।
कभी लिखे पन्ने रखे-रखे पीले पड़
समय की भीड़ में कहीं खो जाते थे।
धन्यवाद ब्लॉग की दुनिया,
मन की बातें लिखने के लिए…………
इतना बड़ा आसमान और इतनी बड़ी ज़मीन दे दी है ।
ढेरो जाने-अनजाने पाठक और आलोचक,
सबको धन्यवाद।
अब मन की हर बात, हर विचार को,
जब चाहो लिख डालो।
मन में भरे ख़ज़ाने और उमड़ते-घुमड़ते विचारों को
पन्ने पर उतारने की पूरी छूटहै।
लिखती तो मैं पहले भी थी, पर अब लिखने में मज़ा आने लगा है।
Source: लिखती तो मैं पहले भी थी (कविता )