मौन (कविता)

ना काग़ज़ ना कलम,
एक आवाज़
लेखनी बन जाती है।
बस सुनने के लिये,
इन कानों को बंद कर
सुनना होता है ……
मौन हो, अंतरात्मा की आवाज।

Source: मौन (कविता)

 

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30 thoughts on “मौन (कविता)

  1. बहुत सुन्दर लिखा है आपने मै अपनी तरफ से कुछ लिखने से अपने आपको रोक नही पायी।
    जब शांत होकर बैठो ध्यान से खुद को सुनो
    समझ मे नही आता हमारे साथ कौन बोल रहा
    हमारे मौन मे जिह्वा के सहारे के बिना भी
    ये शब्द कहाँ से डोल रहा 😊

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    1. बहुत सुंदर !!! शांत और मौन होना सरल नही होता. पर अगर मन को साध लिया तब बड़ा अच्छा एहसास होता है. 😊😊

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