शिलांग या पूर्व का स्कॉटलैंड – (यात्रा वृतांत और दुर्घटना )

7 फरवरी 2015
मैं शिलांग पहले भी जा चुकी हूँ। यह मेघालय की राजधानी है। शिलांग एक खूबसूरत पहाड़ी स्थान है। अतः जब दूसरी बार जाने का अवसर मिला। तब मैं तुरंत तैयार हो गई।
शिलांग जाने के लिए रेल मार्ग नहीं है। यहाँ हवाई जहाज़ की कम ही उड़ानें जाती हैं। सड़क मार्ग से यहाँ जाना सबसे सुविधाजनक है। सात फरवरी को दोपहर लगभग एक बजे मैं और मेरे पति हवाई जहाज़ से गौहाटी पहुँचें। वहाँ से कार से शिलांग के लिए निकले। यह दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। हमलोगों ने सोचा दोपहर का भोजन मार्ग में किसी होटल या ढाबा में खा लेंगे। शाम तक शिलांग पहुँच जाएँगे। तब थोड़ी देर वहाँ बाज़ार में घूमेंगे।
शिलांग जाने की सड़क पूरी तरह से पहाड़ी मार्ग है। एक तरफ पहाड़ और दूसरी ओर घाटियां और हरे-भरे पेड़ पौधे बड़े सुंदर लग रहे थे। हम मंत्र-मुग्ध प्रकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। पर तभी हमारी कार रुक गई। पता चला, आगे पूरी सड़क जाम थी। दोपहर से शाम और फिर रात हो गई। पर आवागमन ठप्प था। किसी तरह कार थोड़ी–थोड़ी खिसक रही थी। कुछ पुलिसवाले और मिलिट्री की गाडियाँ आई। तब मार्ग खुलने की आस जागी। काफी देर के बाद रात नौ बजे रास्ता खुला।
अभी थोड़ी दूर ही पहुँच थे। तभी कुछ लोग हमारी कार रोक कर मदद मांगने लगे। उनके साथ एक घायल युवक था। जिसे आगे पुलिस थाने या अस्पताल तक ले जाने का अनुरोध कर रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे में क्या करें। अन्य गाड़ियों की तरह आगे बढ़ जाएँ या मदद करें।? खैर, हमने उस युवक को कार में बैठा लिया। वह होश में था। पर बदहवाश था। इस लिए ठीक से कुछ बता नहीं पा रहा था। सौभाग्यवश थोड़ी दूर पर कुछ पुलिसवाले मिल गए। उनके साथ एम्बुलेन्स भी थी। हमने उस युवक को वहाँ उतारा। तब पता चला कि वह पुलिस का जवान था। उस दिन वहाँ पर भीड़ और पुलिस में भयंकर झड़प हुई थी। कुछ वाहनें भी जला दी गई थी। इसी से वजह से सड़क जाम थी। उस उपद्रव में यह जवान घायल हो अकेला सड़क के किनारे पड़ा रह गया था। वर्दी के ऊपर उस जवान ने काली जैकेट पहन रखी थी। अतः वह पुलिस का जवान है, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था।
वहाँ से आगे बढ़ने पर एक आत्म संतुष्टि थी, किसी अनजाने को मदद करने का। पर शिलांग जल्दी पहुँचने की चिंता भी थी। हम रात 10 बजे शिलांग पहुँचे। हमने 2-3 घंटे के रास्ते को नौ घंटे में तय किया था। हमारा उस दिन का सारा कार्यक्रम बेकार हो गया। मन में खयाल आया-
                                    होई है सोई जो राम रची राखा.

दूसरे दिन सुबह-सुबह हम तैयार हो कर घूमने निकाल गए। पर्वत, हरीयाली और शीतल समीर ने मन प्रसन्न कर दिया। यहाँ की पर्वत माला बड़ी सुंदर है। यहाँ के लोग शांत स्वभाव के हैं। शिलांग और आस-पास के ग्रामीण परिवेश बड़े साफ-सुथरे हैं। वहाँ की सफाई देख कर मन खुश हो गया।
एशिया के सबसे साफ सुथरे गाँव का श्रेय वहाँ के एक ग्राम मावियननिंग ग्राम को मिला है। जिसे समय की कमी की वजह से हम देख नहीं पाये।
हम सभी एलीफेंट झरना / फ़ाल पहुँचें। यह एक खूबसूरत पहाड़ी झरना है। शिलांग पीक वहाँ की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। जहाँ से शिलांग का बड़ा खूबसूरत नज़ारा दिखता है। राह में और भी अनेक खूबसूरत झरने नज़र आये । यहाँ का गोल्फ कोर्स विश्व प्रसिद्ध है।
चेरापुंजी विश्व की सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह है। इस स्थान का वास्तविक नाम सोहरा है। सोहरा बड़ी साफ-सुथरी जगह है। यहाँ के इको पार्क से पहाड़, और घाटियाँ का नज़ारा खूबसूरत लगता है। यहाँ की एक और लाजवाब चीज़ है- पेडों की सजीव जड़ों से बना झूलता पुल। यहाँ की ख़ासी जन जातियों के लोग अपने अद्भुत योग्यता का इस्तेमाल करते हुए इस तरह के पुल बना लेते हैं। जब किसी नदी के ऊपर यह पुल बनाना होता है, तब ये सुपारी के पेड़ के लंबे-लंबे तनों को बीच से चीर कर नदी के ऊपर इस पार से उस पार तक रख देते है। यहाँ के रबर के पेड़ों की नई पतली जड़ों को उस दिशा में बढ़ने देते है। यहाँ का मौसम और हमेशा होने वाली बारिश इन जड़ों को सुपारी के तनों पर बढ्ने में मदद करती है। बढ़ते-बढ़ते दूसरे किनारे पर जा कर ये जड़ें मिट्टी में जड़ें जमा लेतीं हैं। धीरे-धीरे ये जड़ें मजबूत हो जाती है। इस तरह ये जड़ें मजबूत पुलों का रूप का ले लेती है। इन पर से आसानी से नदी पार किया जा सकता है। ये पुल बहुत मजबूत होतें हैं। इस तरह के पुल मानव मस्तिष्क की अद्भुत देन है। पूरे विश्व में ये पुल अनोखे हैं। ऐसे पुल और कहीं नहीं पाए जाते हैं।
मवासमाई गुफाएँ प्रकृतिक रूप से बनी गुफा हैं। यहाँ पानी के कटाव ने कुदरती तौर पर बड़े सुंदर आकार बना दियेँ हैं। एक ओर से अंदर जाने का रास्ता है। यह गुफा काफी लंबी है। बाहर निकालने का रास्ता दूसरी ओर है। इसमें अद्भुत आकृतियाँ हैं। varsha काल में इन गुफाओं में जाना संभव नहीं होता है।
शिलांग से 15 किलोमीटर दूर यहाँ का ऊमीयम लेक है। यह ऊमीउम नदी पर बनाया गया लेक है। यह बड़ापानी के नाम से भी प्रसिद्ध है। लेक के किनारे ढेरो पाइन के वृक्ष हैं। साथ ही नेहरू पार्क है। इसे शिलांग- गौहाटी के सड़क मार्ग यानि उच्च राजपथ से बड़ी सुविधा से देखा जा सकता है। यह बड़ा खुबसूरत लेक है।
भारत के इस उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में प्रायः मातृसत्ता व्यवस्था है। यहाँ अनेक जनजातियाँ है। जिनमें जायदाद की हकदार पुत्री होती है। यहाँ ख़ासी और जनटिय जनजातियों की जनसंख्या सर्वाधिक हैं। यहाँ की जनजातियाँ प्रायः आदिशक्ति शिव या देवी के उपासक हैं।

चेरापुंजी ( खूबसूरत यात्रा वृतांत )

शिलांग के पास, चेरापुंजी विश्व की सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह है। इस स्थान का वास्तविक नाम सोहरा है। सोहरा बड़ी साफ-सुथरी जगह है। यहाँ के इको पार्क से पहाड़, और घाटियाँ का नज़ारा खूबसूरत लगता है।

यहाँ की एक और लाजवाब चीज़ है- पेडों की सजीव जड़ों से बना झूलता पुल। यहाँ की ख़ासी जन जातियों के लोग अपने अद्भुत योग्यता का इस्तेमाल करते हुए इस तरह के पुल बना लेते हैं। जब किसी नदी के ऊपर यह पुल बनाना होता है, तब ये सुपारी के पेड़ के लंबे-लंबे तनों को बीच से चीर कर नदी के ऊपर इस पार से उस पार तक रख देते है। यहाँ के रबर के पेड़ों की नई पतली जड़ों को उस दिशा में बढ़ने देते है। यहाँ का मौसम और हमेशा होने वाली बारिश इन जड़ों को सुपारी के तनों पर बढ्ने में मदद करती है। बढ़ते-बढ़ते दूसरे किनारे पर जा कर ये जड़ें मिट्टी में जड़ें जमा लेतीं हैं। धीरे-धीरे ये जड़ें मजबूत हो जाती है। इस तरह ये जड़ें मजबूत पुलों का रूप का ले लेती है।

इन पर से आसानी से नदी पार किया जा सकता है। ये पुल बहुत मजबूत होतें हैं। इस तरह के पुल मानव मस्तिष्क की अद्भुत देन है। पूरे विश्व में ये पुल अनोखे हैं। ऐसे पुल और कहीं नहीं पाए जाते हैं।