मुझे मालूम हुआ न्यू मार्केट में चाय पत्ती की बड़ी अच्छी दुकान “कोहिनूर” है। बंगाल की दार्जिलिंग चाय बड़ी मशहूर है और मेरी पसंदीदा भी। दुकान ढूँढते हुए हम हौग मार्केट के पीछे की सड़क पर पहुँचें। वहाँ चाय पत्ती की एक दुकान तो दिखी। पर उसका नाम कहीं लिखा नज़र नहीं आया। पूछने पर मालूम हुआ कि इस दुकान का नाम कोहिनूर है। चाय की प्याली को होठों के लगाने के पहले हम शायद हीं उसके इतिहास या नाम के बारे में सोंचते है। पर सच्चाई यह है कि इनकी भी अपनी कहानी होती है और इनका भी अपना एक नाम होता है। काली, सफ़ेद , हरी और ऊलोंग (चीन की) चाय पत्तियाँ अलग-अलग होतीं हैं। चाय पत्तियों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि चाय पत्तियाँ जिस स्थान या स्टेट में उपजाई जाती हैं। उस नाम से ही जानी जाती हैं। जैसे तीस्ता घाटी क्षेत्र की पत्तियाँ तीस्ता चाय पत्ती और मकईबारी स्टेट की पत्ती मकाईबारी चाय पत्ती के नाम से बाज़ार में मिलती है। दार्जिलिंग में ऐसे ही ढेरो टी स्टेट है। अलग-अलग जगहों कि पत्तियों के रंग, स्वाद और खुशबू में अंतर होता है। स्वाद और खुशबू के आधार पर चाय पत्तियों का मूल्य तय होता है। कोहिनूर दुकान से हमने थोड़ा गोल दाने वाली पत्तियाँ ली। ये चाय को गहरा रंग देती है। साथ में थोड़ा लीफ़ लिया। ऐसी पत्ती हल्का रंग देती है पर इनकी खुशबू बड़ी अच्छी होती है। वापस लौटने पर इन से चाय बना कर पीने पर दिल खुश हो गया। साथ ही आफसोस हुआ कि मैंने पत्तियाँ ज्यादा क्यों नहीं लीं। कोहिनूर दुकान वास्तव में अच्छी दुकान है। ।
कोलकाता जा कर मुझे वहाँ की बंगाली तरीके से बनी मछ्ली खाने की बड़ी इक्छा थी। हमारे एक परिचित ने कस्तुरी रेस्टोरेन्ट का पता बताया। यह न्यू मार्केट में फ्री स्कूल स्ट्रीट में है। सीढ़ियों से ऊपर पहुँच कर लंबा सा हाल नज़र आया। वहाँ का रख-रखाव भी मामूली था। बड़ा साधारण सा दिखनेवाले रेस्टोरेन्ट देख दुविधा होने लगी। कहीं हमने यहाँ आ कर गलती तो नहीं किया। हमने मेनू देखना चाहा। वहाँ का मेनू बड़ा नायाब था। दो ट्रे में ढेर सारे मछली के बने व्यंजन कटोरों में सजे थे। जो व्यंजन पसंद हो उन कटोरों को उठा लेना था। उस रेस्टोरेन्ट में सिर्फ मछली के व्यंजन मिलते है। चिंगड़ी, रेहू, भेटकी, कतला, पोमफ्रेट, हिलसा / इलिस मछली के अलावा कई और मछलियों के व्यंजन भी उपलब्ध थे। साथ में सादा चावल था। सभी व्यंजन स्वाद के लिहाज़ से दूसरे से भिन्न थे। मैंने पहली बार मछली किसी साग या सब्जी के साथ बना देखा था। भोजन का स्वाद लाजवाब था। टमाटर की मीठी चटनी और सेवई भी स्वादिष्ट थी। रेस्टोरेन्ट देख कर हुई दुविधा व्यर्थ निकला। वहाँ भोजन कर बंगाल के स्वादिष्ट भोजन का भरपूर लुत्फ़ मिला। तब खयाल आया – “रूप से ज्यादा गुण मायने रखता है।“ कस्तुरी वास्तव में कस्तुरी खुशबू की तरह सुवासित थी- “भोजन के सुगंध से।“