पोक्सो- बच्चों के लिए कानून ( महत्वपूर्ण जानकारी )

पोक्सो- बच्चों के लिए कानून ( महत्वपूर्ण जानकारी )

हमारे देश में बच्चों के लिए कड़े कानून की जरूरत कई बार महसूस की गई। पहले भारत में बाल मुकदमों की प्रक्रिया जटिल और थकाने वाला था। अतः भारत की संसद अधिनियम में 22 मई 2012 को बाल यौन शोषण के खिलाफ बच्चों का संरक्षण कानून पारित किया। 

आज विश्व में बच्चों की सब से बड़ी आबादी भारत में है । हमारे देश में लगभग 42 प्रतिशत आबादी अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की है। अतः बच्चों का स्वास्थ्य और सुरक्षा महत्वपूर्ण है। ये बच्चे भविष्य की अनमोल निधि है।
यह अधिनियम अठारह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बनाया गया है। यह बच्चों के स्वस्थ, शारीरिक, भावनात्मक , बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने को महत्व देता है। बच्चे के साथ मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न या दुर्व्यवहार दंडनीय है। इस अधिनियम के तहत कठोर दंड का प्रावधान है ।

बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों को नियंत्रित करने के लिए “प्रोटेक्सन ऑफ चिल्ड्रेन फ़्रोम सेक्सुयल ओफ़ेंसेस” कानून बनाया गया। यह दो वर्ष पहले बच्चों के सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून है। पर यह कानून बहुत कम लोगों को मालूम है। अतः इसका पूरा फ़ायदा लोगों को नहीं मिल रहा है। इसलिए लोगों के साथ-साथ बच्चों और सभी माता-पिता को भी इसकी समझ और जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही बच्चों में सही-गलत व्यवहार की समझ और निर्भीकता भी विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सभी माता-पिता बच्चों की सभी बातों को सुने और समझे।
लोगों में जागरूकता लाने के लिए मीडिया, लेखकों, पत्रकारों को सहयोग महत्वपूर्ण है। अतः कलम की ताकत का भरपूर उपयोग करना चाहिए।

गुप्त कामाख्या – दीर्घेस्वरी मंदिर गौहाटी –( यात्रा संस्मरण और वहाँ की पौराणिक कहानियाँ )

 

दिनांक – 10.2.2015, बुधवार। समय दोपहर – 12:30
यह मंदिर भारत सरकार द्वारा सुरक्षित प्राचीन स्मारक है। यहाँ पत्थरों पर अनेक रचनाएँ / आकृतियाँ प्राचीन समय की हैं। यहाँ के पुजारी के अनुसार यह गुप्त कामाख्या के रूप में भी जाना जाता है। यह गौहाटी शहर के उत्तर में, ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित है। सड़क के किनारे कुछ पूजा सामग्री की दुकाने हैं। वहीं से मंदिर की सीढ़ियाँ शुरू होती है। थोड़ा ऊपर जाने पर बाईं ओर चट्टान पर गणेश जी विशाल प्रतिमा बनी है। जो सिंदूर आरक्त है। बगल में चट्टान पर विशाल पीपल वृक्ष है। मंदिर में आने-जाने के लिए अन्य सीढ़ियां भी बनी है। मंदिर तक की सीढ़ियों को चढ़ने के दौरान अनेकों प्रतिमाएँ चट्टानों पर बनी दिखती हैं। मंदिर परिसर में माँ के पद चिन्ह बने है।जहां पुष्प और सिंदूर चढ़ाये जाते है।
इस मंदिर का निर्माण राजा स्वर्गदेव शिव सिंह ने 1714 से 1744 में करवाया था। इस वंश के बाद के राजाओं ने भी इसकी देखभाल की। तत्कालीन राजाओं ने यह जानकारी एक पत्थर पर अंकित करवाया था। जो आज भी मंदिर के पीछे के द्वार पर उपलब्ध है। यह मंदिर पथरीली पहाड़ी के ऊपर है। यहाँ दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े धूम-धाम से होता है तथा भैंसे की बलि दी जाती है।
मंदिर के अंदर जाने के लिया सीढ़ियों से अंदर उतरना पड़ता है। ये सीढ़ियाँ एक छोटी अंधकरमय गुफा में ले जातीं हैं। यह प्रकृतिक रूप से बनी गुफा है। यह मंदिर का गर्भगृह है। जहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते है। उसकी रोशनी में मंदिर के एक कोने में बैठे पुजारी पूजा-अर्चना करवाते हैं। पुजारी जी से पूछने पर उन्होने वहाँ से जुड़ी दिलचस्प कहानी सुनाई।
किवदंतियाँ –
1) ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर मार्कन्डेय मुनि का आश्रम हुआ करता था। मंदिर के गर्भगृह में उन्होने माँ दुर्गा की आराधना की। माँ ने इस गर्भगृह में उन्हे दर्शन दिया था। यहीं पर उन्होने मार्कन्डेय पुराण की रचना की थी।
2) इस मंदिर को भी शक्तिपीठ कहा गया है। इस स्थान को गुप्त कामाख्या भी कहते है। ऐसा कहा जाता है कि कामाख्या माँ के दर्शन के बाद यहाँ दर्शन लाभदायक होता है।गौहाटी में कामाख्या मंदिर के बाद दीर्घेस्वरी मंदिर को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि यहाँ भी सती के कुछ अंग गिरे थे ।

एक अनुठा होटल- फ़्लोटेल (यात्रा वृतांत )

कोलकाता के प्रवास के दौरान एक ऐसे होटल में रुकने का अवसर मिला जो हुगली नदी पर है। यह होटल दावा करता है, कि यह भारत भर में नदी पर बना अकेला होटल है। साथ ही यह पर्यावरण सहयोगी होटल है । इस होटल से नया और पुराना दोनों हावड़ा पुल नज़र आता है। दूर, नदी के दूसरे किनारे पर हावड़ा रेलवे-स्टेशन नज़र आता है। नदी के दूसरे तट पर मंदिर और अनेकों जेट्टी / घाट नज़र आते हैं।
इसकी एक और बात अनूठी है। इस होटल के एक ओर रेल लाईन दूसरी ओर हुगली नदी है। यह होटल भी एक घाट / जेट्टी पर है तथा एक पुल से होटल जुटा है। ज़्वार- भाटे के साथ-साथ यह होटल ऊपर-नीचे होता है।
यह होटल फ्लोटेल स्ट्रेंड रोड पर है। जो कोलकाता का एक ऐतिहासिक स्थान है। इसके पास ही बाबू घाट है। जिससे लगातार जल परिवहन के जहाज चलते रहते हैं। इसके पास इडेन गार्डेन स्टेडियम, स्टेट बैंक का आफिस, गवर्नर हाऊस, कोलकाता उच्च न्यायालय, आकाशवाणी भवन, अँग्रेज़ो के समय का जाना-माना 1887 स्थापित तरणताल है। हावड़ा रेल स्टेशन भी करीब है।
यह वास्तव में अनोखा होटल है। इसमें रहने का अपना मज़ा है। सबसे ख़ास बात है हुगली के पल-पल बदलते रंग को इतने निकट से देखने का अवसर मिलता है। यह होटल हुगली नदी के जल में जहाज के रूप तैरता रहता है। इसलिए दिन और रात हर समय नदी को करीब से देखा जा सकता है।

इस होटल में रहने का एक अलग  खूबसूरत एहसास  है। मैं अपने कोलकाता के इस खुशनुमा याद को कभी भुला नहीं पाऊँगी।

मेरा अजनबी भाई ( एक अनोखी और सच्ची कहानी )

मेरे जीवन में कुछ रहस्यमय घटनाएँ हुई हैं। जिन्हे याद कर मै रोमांचित हो जाती हूँ। यह वास्तविक घटना सन 1991 की है। तब हम घाटशिला नाम के छोटे से शहर में रहते थे । एक बार हम सभी कार से राँची से घाटशिला लौट रहे थे। यह दूरी लगभग 170 किलोमीटर थी। यह दूरी समान्यतः चार घंटे में हम अक्सर तय करते थे।

शाम का समय था। सूरज लाल गोले जैसा पश्चिम में डूबने की तैयारी में था। मौसम बड़ा सुहाना था। यात्रा बड़ी अच्छी चल रही थी। मेरे पति  कार चला रहे थे। साथ ही गाना गुनगुना रहे थे। मेरी आठ वर्ष की बड़ी बेटी  व एक वर्ष की छोटी बेटी कार के पीछे की सीट पर आपस में खेलने में मसगुल थीं।

तभी एक तेज़ आवाज़ ने हम सभी को भयभीत कर दिया। कार तेज़ी से आगे बाईं ओर झुकती हुई सड़क पर घिसटने लगी। अधर ने किसी तरह कार को रोका। कार से बाहर आकर हमने देखा कि आगे का बायाँ चक्का अपनी जगह से पूरी तरह बाहर निकाल आया है। कार रिम के सहारे घिसती हुई रुक गई थी। कार का चक्का पीछे सड़क के किनारे पड़ा था। हम हैरान थे कि ऐसा कैसे हुआ? एक भयंकर दुर्घटना से हम बाल-बाल बच गए थे।

एक बड़ा हादसा तो टल गया था। पर हम चिंतित थे। शाम ढाल रही थी। शहर से दूर इस सुनसान जगह पर कार कैसे बनेगी? सड़क के दूसरी ओर मिट्टी की छोटी सी झोपड़ी नज़र आई। जिसमें चाय की दुकान थी। मेरे पति उधर बढ़ गए। मैं कार के पास खड़ी थी। तभी मेरी नज़र कार के पीछे कुछ दूर पर गिरे एक नट पर पड़ी। मैंने उसे उठा लिया। किसी अनजान प्रेरणा से प्रेरित मैं काफी आगे तक बढ़ती गई। मुझे और भी नट व बोल्ट मिलते गए और मैं उन्हे उठा कर अपने साड़ी के पल्लू में जमा करते गई। जबकि मैं यह भी नहीं जानती थी कि वे किसी काम के हैं या नहीं।

मैं जब वापस लौटी तब अधर मेरे लिए परेशान दिखे। तब तक हमारी कार के पास कुछ ग्रामीण इकट्ठे हो गए थे। उनमें से एक चपल सा दिखने वाल साँवला, कद्दावर व्यक्ति मदद करने आगे आया। उसके चपटे, बड़े से चेहरे पर चोट के निशान थे और छोटी-छोटी आँखों में जुगनू जैसी चमक थी। मेरे पास के नट व बोल्ट देख कर वह उत्साहित हो गया। उसने कहा- “दीदी जी, आपने तो सारे नट-बोल्ट जमा कर लिए हैं। लाईये मैं आपकी कार बना देता हूँ। मुझे यह काम आता है।” तुरंत उसने कुछ ग्रामीणों को पास के गाँव से कुछ औज़ार लाने भेजा। उसके “दीदी” संबोधन और ग्रामीणो पर प्रभाव देख कर हमें तस्सली हुई। चलो, अब कार बन जाएगी।

अधर ने मुझे और बच्चों को चाय की दुकान पर बैठा कर चाय दिलवाई और स्वयं कार ठीक करवाने लगे। चाय वाला मुझसे बार-बार कुछ कहने की कोशिश कर रहा था। चाय वाले ने फुसफुसाते हुए मुझ से कहा- ” आप यहाँ मत रुकिए। अब रात भी हो रही है। आप के साथ बच्चे भी हैं। तुरंत यहाँ से चले जाइए। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसी बातें क्यों कर रहा है। चाय वाले ने फिर मुझसे कहा- ” वह व्यक्ति बड़ा खतरनाक है जो आपलोगों की सहायता कर रहा है। यहाँ पर होनेवाले ज़्यादातर अपराधों में यह शामिल होता है। हाल में हुए हत्या का आरोपी है। आप यहाँ मत रुकिए। थोड़ी देर में मेरी दुकान भी बंद हो जाएगी। यह तो बड़ा दुष्ट व्यक्ति है। पता नहीं, कैसे आपकी मदद कर रहा है। यहाँ सभी उससे बड़ा डरते है।” वह लगातार एक ही बात तोते की तरह रट रहा था -“आप बच्चों को ले कर जाइए। मत रुकिए।” चाय दुकान में बैठे अन्य लोगों ने भी सहमति में सिर हिलाया अौर बताया कि वह व्यक्ति वहाँ का कुख्यात अपराधी है।

मै घबरा गई। मुझे याद आया कि मेरे काफी गहने भी साथ है क्योंकि, मैं एक विवाह में शामिल होने राँची गई थी। मैंने अपने पति को सारी बात बताने की कोशिश की। पर वह अनजान व्यक्ति लगातार अपने पति के साथ बना रहा। वह मुझे  अकेले में बात करने का अवसर नहीं दे रहा था। मुझे परेशान देख , उस अजनबी ने मुझे समझाते हुए कहा- “दीदी, आप घबराइए मत। हम हैं ना। भय की बात नहीं है। हमारे रहते यहाँ आपको कोई परेशान नहीं कर सकता। वह हमें रोकने का जितना प्रयास कर रहा था। मन में उतना ही डर बढ़ता जा रहा था। उसकी मीठी-मीठी बातों के पीछे षड्यंत्र नज़र आ रहा था।

मैंने किसी तरह अवसर निकाल कर अपने पति को सब बातें बताईं। पर वहाँ से जाने का कोई साधन नहीं था। अब क्या करूँ। कुछ समझ नहीं आ रहा था। अँधेरा घिरना शुरू हो चुका था। तभी एक राँची जाने वाली एक बस आती नज़र आई। ग्रामीणों ने बताया कि बस यहाँ नहीं रुकती है। घबराहटवश, मैं बीच सड़क पर खड़ी हो गई।  बस को रोकने के लिए हाथ हिलाने लगी। बस रुक गई। बस वाले ने मेरी परेशानी और बच्चों को देख कर हमें बैठा लिया। वह अजनबी लगभग गिड्गिड़ाने लगा। “दीदी जी, मैं जल्दी ही कार बना दूँगा। आप मत जाइए।” वह मेरे पति का हाथ पकड़ कर अनुरोध करने लगा।
कुछ सोचते हुए मेरे पति ने मुझे दोनों बेटियों के साथ बस में बैठा दिया और मेरे जेवरों का सूटकेस भी साथ दे दिया। वे स्वयं वहाँ रुक गए। मेरा दिल आशंकाओं से भर गया। पर उन्हों ने आश्वासन देते हुए मुझे भेज दिया।

राँची पहुँच कर अपने घर में मैंने सारी बातें बताई। उन्होंने तत्काल कारखाने (कार सर्विसिंग ) में फोन किया। दरअसल उस दिन सुबह ही हमारी कार वहाँ से धुल कर आई थी। पता चला कार सर्विसिंग वालों के भूल के से यह दुर्घटना हुई थी। कार के चक्कों के नट-बोल्ट उन्होंने लगाया गया था। पर औज़ार से कसा नहीं था। कार सर्विसिंग के मालिक ने अपनी गलती मानी। तुरंत ही कार सर्विसिंग वालों ने एक कार और कुछ मेकैनिकों को हमारे यहाँ भेजा। जिससे वे अधर और मेरी खराब कार को सुधार कर वापस ला सकें।
कार सर्विसिंग कें लोग मुझ से कार खराब होने की जगह को समझ ही रहे थे। तभी मैंने देखा मेरे पति  अपनी कार ले कर आ पहुंचे हैं। मै हैरान थी। उन्हों ने बताया कि बड़ी मेहनत से उस व्यक्ति ने कार ठीक किया। कार के रिम को सड़क से ऊपर उठाने और चक्के को सही जगह पर लगाने में उसे बड़ी कठिनाई हुई थी। पर वह लगातार मेरे अकेले लौटने का अफसोस कर रहा था।

मैं इस घटना और उस अजनबी को आज भी भूल नहीं पाती हूँ। कौन था वह अजनबी? वह मुझे दीदी-दीदी बुलाता रहा। पर घबराहट और जल्दीबाजी में मैंने अपने अनाम भाई का नाम तक नहीं पूछा । क्या ऐसे अजनबी को भुलाया जा सकता है? मैं आज भी इस घटना को याद कर सोंच में पड़ जाती हूँ । क्यों कभी एक अपराधी भी मददगार बन जाता है? उस दिन मैंने मान लिया कि बुरे से बुरे इंसान में एक अच्छा दिल होता है।
ऐसे में मेरी नज़रें ऊपर उठ जाती है और हाथ नमन की मुद्रा में जुड़ जाते हैं। जरूर कोई अदृश्य शक्ति हमारी रक्षा करती है। हम उसे चाहे जिस नाम से याद करें- ईश्वर, अल्लाह, क्राइस्ट  ………..

मुरूगन मंदिर के अद्भुत पुजारी जिसे मैं भूल नहीं पाई ( यात्रा वृतांत और प्रेरक कहानी )

यह घटना लगभग 3-4 वर्ष पुरानी है। मैं सपरिवार दक्षिण की यात्रा पर गई थी। वापसी में मैं मदुरै पहुँची। वहाँ के विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर के सौंदर्य से हम सभी अभिभूत थे। इसलिए मै वहाँ के दूसरे महत्वपूर्ण मुरूगन (कार्तिकेय ) मंदिर को देखने का लोभ रोक नहीं सकी। मीनाक्षी मंदिर देखने में काफी समय लग गया था। फिर भी संध्या में मै सपरिवार मुरूगन मंदिर पहुँची। पता चला, मंदिर के बंद होने का समय हो रहा है। मंदिर दर्शन के लिए लंबी लाईन लगी थी। लग रहा था, इस भीड़ में मंदिर में प्रवेश असंभव है। हमारे पास समय कम था।

कुछ राह नहीं सूझ रहा था। अगले दिन सुबह-सुबह वापस लौटने का टिकट कटा था। अतः दूसरे दिन भी दर्शन संभव नहीं था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़े सोच-विचार के बाद हमने विशिष्ट (वी आई पी ) टिकट लेने का निर्णय लिया। दक्षिण के मंदिरों में विशिष्ट (वी आई पी ) टिकट द्वारा तत्काल दर्शन की बड़ी अच्छी व्यवस्था है। हमने विशिष्ट (वी आई पी ) टिकट खिड़की खोजने का प्रयास किया। पर असफल रहे। लोगों से पूछना चाहा। पर भाषा की समस्या सामने आ गई। हिंदी और अँग्रेजी में लोगों से मदद लेने का असफल प्रयास किया। कोई लाभ नहीं हुआ।
मंदिर के वास्तुकला से मैं बहुत प्रभावित थी। भव्य, नक़्क़ाशीदार दीवारें, विशाल मंदिर, चट्टानों की ऊँची -ऊँची सीढ़ियाँ और खंभे सब अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। यह मंदिर मदुरै से आठ किलोमीटर दूर है। इसे थिरुप्परमकुनरम मुरुगन मंदिर भी कहते हैं। भगवान मुरूगन के साथ-साथ भगवान शिव , भगवान विष्णु , भगवान विनायक और देवी दुर्गा भी यहाँ स्थापित हैं। पौराणिक कथा या किवदंती है कि इस स्थान पर भगवान मुरुगा ने देवराज इंद्र की पुत्री देवयानी से विवाह किया था।

हमलोग निराश होने लगे। लगा, बिना दर्शन के वापस लौटना होगा। तभी थोड़े उम्रदराज, पुजारी जैसे लगाने वाले एक व्यक्ति हमारे पास आए। वे अपनी भाषा में कुछ कह रहे थे। पर हमें कुछ समझ नहीं आया। हमने हिंदी और अँग्रेजी में उनसे विशिष्ट (वी आई पी ) टिकट पाने का स्थान पूछा। पर वे हमारी बात नहीं समझ सके। किसी तरह हम इशारे से यह समझाने में सफल हुए कि हम मंदिर में दर्शन करना चाहते है। उन्होने हम सभी को अपने पीछे आने का इशारा किया और तत्काल अपने साथ मंदिर के अंदर ले गए। सभी ने उन्हे और हम सभी को तुरंत अंदर जाने का मार्ग दिया। मंदिर के गर्भगृह के सभी पुजारियों ने उन्हे बड़े सम्मान से प्रणाम किया और हमें दर्शन कराया। वे शायद वहाँ के सम्मानीय और महत्वपूर्ण पुजारी थे।
गर्भगृह से बाहर आ कर उन्होने एक जगह बैठने का इशारा किया। थोड़े देर में वे फूल, माला और प्रसाद के साथ लौटे। हमें बड़े प्यार से टीका लगाया और प्रसाद दिया। हम हैरान थे। एक प्रतिष्ठित और उच्च पदासीन पुजारी हम अनजान लोगों की इतनी सहायता क्यों कर रहे हैं? हमे लगा अब पुजारी जी अच्छी दक्षिणा की मांग करेंगे।
अतः मेरे पति अधर ने उन्हे कुछ रुपये देना चाहा। पर उन्होने लेने से इंकार कर दिया। हमारे बार-बार अनुरोध पर सामान्य सी धन राशि दक्षिणा स्वरूप ली।
इस घटना ने हमे पुजारी और ईश्वर की लीला के सामने नत मस्तक कर दिया। हम सभी एक अजनबी शहर के अजनबी पुजारी के सौजन्य की यादों के साथ वापस लौटे।

कामख्या मंदिर – (यात्रा संस्मरण और पौराणिक कथायें )

मंदिर की खूबसूरत नक्कासी
मंदिर की खूबसूरत नक्कासी

                                                                  क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः |

दिनांक – 9.2.2015, मंगलवार। समय संध्या 4:15
आसाम का गौहाटी शहर विख्यात कामख्या मंदिर के लिए जाना जाता है। यह एक शक्ति पीठ है। यह मंदिर वर्तमान कामरूप जिला में स्थित है। माँ कामख्या आदिशक्ति और शक्तिशाली तांत्रिक देवी के रूप में जानी जाती हैं। इन्हे माँ काली और तारा का मिश्रित रूप माना जाता है। इनकी साधना को कौल या शक्ति मार्ग कहा जाता है। यहाँ साधू-संत, अघोरी विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं।

आसाम को प्राचीन समय में कामरूप देश या कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना जाता था। यह तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता थी कि कामरूप- कामाख्या के सिद्ध लोग मनमोहिनी मंत्र तथा वशीकरण मंत्र आदि जानते है। जिस के प्रभाव से किसी को भी मोहित या वशीभूत कर सकते थे।
वशीकरण मंत्र —

                      ॐ नमो कामाक्षी देवी आमुकी मे वंशम कुरुकुरु स्वाहा|

गौहाटी सड़क मार्ग, रेल और वायुयान से पहुँचा जा सकता है। गौहाटी के पश्चिम में निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत पर यह मंदिर स्थित है। यह समुद्र से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर है। गौहाटी शहर से मंदिर आठ किलोमीटर की दूरी पर पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक सड़क मार्ग है।

वास्तु शिल्प – ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में हुआ था। तब से 17वीं सदी तक अनेकों बार पुनर्निर्माण होता रहा। मंदिर आज जिस रूप में मौजूद है। उसे 17वीं सदी में कुच बिहार के राजा नर नारायण ने पुनर्निमित करवाया था। मंदिर के वास्तु शिल्प को निलांचल प्रकार माना जाता है। मंदिर का निर्माण लंबाई में है। इसमें पूर्व से पश्चिम, चार कक्ष बने हैं। जिसमें एक गर्भगृह तथा तीन अन्य कक्ष हैं।

मंदिर की खूबसूरत नक्कासी
मंदिर की खूबसूरत नक्कासी

ये कक्ष और मंदिर बड़े-बड़े शिला खंडों से निर्मित है तथा मोटे-मोटे, ऊँचे स्तंभों पर टिकें हैं। मंदिर की दीवारों पर अनेकों आकृतियाँ निर्मित हैं। मंदिर के अंदर की दीवारें वक्त के थपेड़ों और अगरबत्तियों के धुएँ से काली पड़ चुकी हैं। तीन कक्षों से गुजर कर गर्भ गृह का मार्ग है। मंदिर का गर्भ -गृह जमीन की सतह से नीचे है। पत्थर की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक छोटी प्रकृतिक गुफा के रूप में मंदिर का गर्भ-गृह है। यहाँ की दीवारें और ऊंची छतें अंधेरे में डूबी कालिमायुक्त है।

इस मंदिर में देवी की प्रतिमा नहीं है। वरन पत्थर पर योनि आकृति है। यहाँ पर साथ में एक छोटा प्रकृतिक झरना है। यह प्रकृतिक जल श्रोत इस आकृति को गीली रखती है। माँ कामाख्या का पूजन स्थल पुष्प, सिंदूर और चुनरी से ढका होता है। उसके पास के स्थल/ पीठ को स्पर्श कर, वहाँ के जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

उसके बगल में माँ लक्ष्मी तथा माँ सरस्वती का स्थान/ पीठ है। यहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते हैं। गर्भगृह से ऊपर, बाहर आने पर सामने अन्नपूर्णा कक्ष है। जहाँ भोग प्रसाद बनता है। मंदिर के बाहर के पत्थरों पर विभिन्न सुंदर आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर का शिखर गोलाकार है। यह शिखर मधुमक्खी के गोल छत्ते के समान बना है।

मधुमक्खी के छट्टे  की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे  की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज

बाहर निकाल कर अगरबत्ती व दीपक जलाने का स्थान बना है। थोड़ा आगे नारियाल तोड़ने का स्थान भी निर्दिष्ट है। पास के एक वृक्ष पर लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए धागा लपेटते हैं। मंदिर परिसार में अनेक बंदर है। जो हमेशा प्रसाद झपटने के लिए तैयार रहते है। अतः इनसे सावधान रहने की जरूरत है।

किंवदंतियां- मंदिर और देवी से संबंधित इस जगह की उत्पत्ति और महत्व पर कई किंवदंतियां हैं।

1) एक प्रसिद्ध कथा शक्तिपीठ से संबंधित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ सती की योनि गिरी थी। जो सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति का प्रतीक है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। सती के पिता ने विराट यज्ञ का आयोजन किया। पर यज्ञ के लिए शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया था। फलतः सती ने अपमानित महसूस किया और सती ने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।

इस से व्यथित, विछिप्त शिव ने यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठा लिया। सती के मृत शरीर को ले कर वे अशांत भटकने लगे। शिव सति के मृत देह को अपने कन्धे पर उठा ताण्डव नृत्य करने लगे। फ़लस्वरुप पृथ्वी विध्वंस होने लगी। समस्त देवता डर कर ब्रम्हा और विष्णु के पास गये और उनसे समस्त संसार के रक्षा की प्रार्थन की। विष्णु ने शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने चक्र से सती के मृत शरीर के खंडित कर दिया। फलतः सती के शरीर के अंग भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानों पर गिर गए। शरीर के अंग जहां भी गिरे उन स्थानों पर विभिन्न रूपों में देवी की पूजा के केंद्र बन गए और शक्तिपीठ कहलाए। ऐसे 51 पवित्र शक्तिपीठ हैं। कामाख्या उनमें से एक है। संस्कृत में रचित कलिका पुराण के अनुसार कामाख्या देवी सारी मनोकामनाओं को पूरा करनेवाली और मुक्ति दात्री शिव वधू हैं।

                      कामाक्षे काम सम्मपने कमेश्वरी हरी प्रिया,
                    कामनाम देही मे नित्यम कामेश्वरी नामोस्तुते||

अंबुवासी पूजा- मान्यता है कि आषाढ़ / जून माह में देवी तीन दिन मासिक धर्म अवस्था में होती हैं। अतः मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन मंदिर सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति के उपासना उत्सव के रूप में धूम धाम से खुलता है।मान्यता है कि इस समय कामाख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है।

2) एक अन्य किवदंती के अनुसार असुर नरका कमख्या देवी से विवाह करना चाहता था। देवी ने नरकासुर को एक अति कठिन कार्य सौपते हुए कहा कि अगर वह एक रात्रि में निलांचल पर्वत पर उनका एक मंदिर बना दे तथा वहाँ तक सीढियों का निर्माण कर दे। तब वे उससे विवाह के लिए तैयार हैं। दरअसल किसी देवी का दानव से विवाह असंभव था। अतः देवी ने यह कठिन शर्त रखी। पर नरकासुर द्वारा इस असंभव कार्य को लगभग पूरा करते देख देवी घबरा गई। तब देवी ने मुर्गे के असमय बाग से उसे भ्रमित कर दिया। नरकासुर ने समझा सवेरा हो गया है और उसने निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया और शर्त हार गया। नरकासुर द्वारा बना अधूरा मार्ग आज मेखला पथ के रूप में जाना जाता है।

3)एक मान्यता यह भी है कि निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत शिव और सती का प्रेमस्थल है। देवी कामाख्या सृष्टि, जीवन रचना और प्रेम की देवी है और यह उनका प्रेम / काम का स्थान रहा है। अतः इस कामाख्या कहा गया है।

4) एक कहानी के अनुसार कामदेव श्राप ग्रस्त हो कर अपनी समस्त काम शक्ति खो बैठे। तब वे इस स्थान पर देवी के गर्भ से पुनः उत्पन्न हो शापमुक्त हुए।

5)एक कथा संसार के रचनाकार और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा से संबन्धित है। इस कहानी के अनुसार देवी कामाख्या ने एक बार ब्रह्मा से पूछा कि क्या वे शरीर के बिना जीवन रचना कर सकते हैं। ब्रह्मा ने एक ज्योति पुंज उत्पन्न किया। जिसके मध्य में योनि आकृति थी। यह ज्योति पुंज जहाँ स्थापित हुई उस स्थान को कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना गया।

6) एक अन्य मान्यतानुसार माँ काली के दस अवतार अर्थात दस महाविद्या देवी इसी पर्वत पर स्थित है। इसलिए यह साधना और सिद्धी के लिए उपयुक्त शक्तिशाली स्थान माना जाता है। ये दस महाविद्या देवियाँ निम्नलिखित हैं– भुवनेश्वरी, बगलामुखी, छिन्मस्ता, त्रिपुरसुंदरी, तारा, घंटकर्ण, भैरवी, धूमवती, मातांगी व कमला।

                                       कामख्ये वरदे देवी नीलपर्वतवासिनी,
                                     त्वं देवी जगत्म मातर्योनिमुद्रे नामोस्तुते ||

मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती

हुगली की उल्टी धार और डॉलफिन ( यात्रा अनुभव )

कोलकाता के प्रवास के दौरान एक ऐसे होटल में रुकने का अवसर मिला जो हुगली नदी पर है। यह होटल दावा करता है, कि यह भारत भर में नदी पर बना अकेला होटल है। यह वास्तव में अनोखा होटल है। इसमें रहने का अपना मज़ा है। सबसे ख़ास बात है हुगली के पल-पल बदलते रंग को इतने निकट से देखने का अवसर मिलता है। यह होटल हुगली नदी के बीच जहाज के रूप में बना है। इसलिए दिन और रात हर समय नदी को करीब से देखा जा सकता है।
सुबह की लालिमा, जाल लगाते मछुआरे, दिन भर चलती छोटी-बड़ी नावों को देखने का आनंद लाजवाब है। कभी-कभी साधारण नावों और जहाजों के बीच चमचमाता आधुनिक स्टीमार तेज़ गति से इन्हे पीछे छोड़ता तेज़ी से गुजर जाता है। नदी में थोड़ी-थोड़ी दूर पर जेट्टी या घाट बने हैं। जहां से यात्री जहाज चलते रहते हैं। कोलकाता में नाव और जल जहाज यातायात के महत्वपूर्ण साधन है।जो सस्ती और सुविधाजनक है।
इस होटल से नया और पुराना दोनों हावड़ा पुल नज़र आता है। दूर, नदी के दूसरे किनारे पर हावड़ा रेलवे-स्टेशन नज़र आता है। नदी के दूसरे तट पर मंदिर और अनेकों जेट्टी/ घाट नज़र आते हैं। यहाँ रात का एक अलग मनमोहक नज़ारा होता है। बहुत से नाव, जहाज और बजरे सजे-धजे, रंगीन रौशनी से नहाए इधर-उधर पानी पर तैरते दिखते हैं। ये पर्यटकों से भरे होते हैं। एक जहाज तो जलपरी के आकार और सजावट वाला है।
इस चहल-पहल को देखने की चाहत में एक और दुर्लभ चीज़ नज़र आई। वह है हुगली/ गंगा डॉलफिन। मेरी छोटी पुत्री चाँदनी ने फोन पर मुझसे कहा था कि गंगा में डॉलफिनें हैं। पर मुझे वे नज़र नहीं आई थीं। इस होटल में रहने के दौरान मैंने अनेक बार डॉलफिनों को देखा। गंगा की डॉलफिनें शायद थोड़ी शर्मीली हैं। वे जल सतह पर कम समय के लिए आ कर तुरंत ही डुबकी लगा लेती हैं। अक्सर वे पानी की सतह पर तभी दिखती हैं जब पानी साफ-सुथरा हो। शायद गंदगी से उन्हें भी घुटन होती है।
इस होटल में रुक कर एक अजीब नज़ारा हुगली नदी में देखने को मिला। हुगली नदी बड़ी विशाल है। अक्सर इसकी सतह पर कुछ न कुछ कचरा तैरता नज़र आ जाता है। पर यह नदी चौड़े पाट में बड़ी शांति से कुड़े-कचरे के बोझ को लिए बहते रहती है। जल प्रवाह बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होती रहती है। पर अचानक मैंने देखा कि जल प्रवाह उल्टी दिशा में होने लगा। अर्थात गंगा (हुगली) उल्टी बहने लगी। गंगा उल्टी बहना मुहावरे में जरूर कहा जाता है, पर वास्तव में ऐसा देख कर हैरानी होने लगी। लोगों के बताया कि यहाँ ऐसा अक्सर होता है। साथ ही नदी का जल स्तर या पानी का उतरना चढ़ना होता रहता है। दरअसल समुद्र यहाँ से बिलकुल करीब है। अतः यह समुद्र के ज्वार-भाटा का असर है। पर यह दृश्य मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। इस उल्टी धार में सारे कुड़े कर्कट पानी के साथ वापस आने लगा। शायद समुद्र इन्हे लौटा रहा था। काश हम सब इस इशारे को समझ नदी और जल जीवों की मदद कर सकें।

गंगासागर -एक यात्रा गंगा की सागर तक (यात्रा संस्मरण और पौराणिक कथाएँ )

15 फरवरी, रविवार, 2015,
कोलकाता से सुबह लगभग आठ बजे हम सब कार से गंगासागर जाने के लिए निकले। यह यात्रा हमारे मित्र श्री राहुल पवार और उनकी पत्नी श्रीमती सीमा पवार के सौजन्य से संभव हुआ। उन्होने यह कार्यक्रम पहले से बना रखा था। उनके आमंत्रण पर अधर और मैंने उनके साथ अपना कार्यक्रम बना लिया। यह दूरी रेल या बस द्वारा भी तय किया जा सकता है।
गंगासागर या सागरदीप गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। यह पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में पड़ता है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है। जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहाँ काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है। यहाँ की भाषा बंगला है। यहाँ पर रहने के लिए होटल मिलते है। साथ ही विभिन्न मतों के अनेकों आश्रम भी है। गंगासागर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जहां मकर संक्रांति के दिन 14 व 15 जनवरी को वृहत मेला लगता है। जिसमें लाखों लोग स्नान और पूजा करने आते हैं। ताकि उनके पाप धुल जाये और आशीर्वाद प्राप्त हो। यह एक पुण्यतीर्थ स्थान है।

हम सभी सड़क मार्ग से गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से डायमंड हार्बर होते हुए लगभग 98 किलोमीटर दूर काकदीप पहुँचे। यहाँ से घाट या जेट्टी तक जाने का 10 मिनट का पैदल मार्ग है। जो बैट्री चालित कार या खुले ठेले पर बैठ कर भी पहुँचा जा सकता है। यहाँ गंगा / हुगली नदी को पार करना पड़ता है। काकदीप से पानी के जहाज़ के द्वारा आधे घंटे की यात्रा के बाद हम कचूबेरी घाट पहुँचे। जहाज का टिकिट मात्र आठ रुपए हैं। जहाज़ पर 30 मिनट की यह यात्रा बड़ी सुहावनी है। जल पक्षियों के झुंडों को देखने और दाना डालने में यह समय कब निकाल जाता है, पता ही नहीं चलता है। ये पक्षी भी अभ्यस्त है। दाना फेकते झुंड के झुंड पक्षी हवा में ही दाना पकड़ने के लिये झपटते हैं। बड़ा मनमोहक दृश्य होता है। इन जहाजों का आवागमन ज्वार-भाटे पर निर्भर करता है। ज्वार-भाटे के कारण जल धारा की दिशा बदलती रहती है। जब जल प्रवाह सही दिशा में होता है तभी ये जहाज़ परिचालित होते है। अन्यथा ये सही समय का इंतज़ार करते हैं।
कचूबेरी घाट पहुँच कर बस, कार या जुगाड़ से आगे की यात्रा की जा सकती है। यहाँ से गंगासागर / सागरद्वीप लगभग 32 किलोमीटर दूर है। बस वाले 20 रुपये प्रति व्यक्ति लेते है और पूरी टॅक्सी का किराया 5 से 6 सौ रुपये हैं। मार्ग में यहाँ के गाँव नज़र आते हैं। ये मिट्टी की झोपड़ियों और तालाबों वाले ठेठ बंगाली गांव होते है। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत, नारियल के लंबे पेड़, बांस के झुरमुट और केले के पौधे लगे होते हैं। काफी जगहों पर पान की खेती भी नज़र आती है।
गंगासागर पहुँच कर कपिल मुनि का मंदिर नज़र आती है । सामने एक लंबी सड़क जल प्रवाह की ओर जाती है। जिसे पैदल या ठेले पर जाया जा सकता हैं। सड़क के दोनों ओर पूजन सामाग्री की दुकाने है। यहाँ पर भिक्षुक और धरमार्थियों की भीड़ दिखती है। साथ ही झुंड के झुंड कुत्ते दिखते है। दरअसल गंगासागर में स्नान और पूजन के बाद भिक्षुक को अन्न दान और कुत्तों को भोजन / बिस्कुट देने की प्रथा है।
गंगासागर पहुँचने पर दूर-दूर तक शांत जल दिखता है। यहाँ सागर का उद्दाम रूप या बड़ी-बड़ी लहरें नहीं दिखती है। शायद गंगा के जल के मिलन से यहाँ जल शांत और मटमैला दिखता है। पर दूर पानी का रंग हल्का नीला-हरा नीलमणि सा दिखता है। प्रकृतिक का सौंदर्य देख कर यात्रा सार्थक लगती है। लगता है, मानो गंगा के साथ-साथ हमने भी सागर तक की यात्रा कर ली हो।
हमलोगों ने जल में खड़े हो कर पूजा किया और प्रथा के अनुसार लौट कर मंदिर गए। मंदिर में मुख्य प्रतिमा माँ गंगा, कपिल मुनि तथा भागीरथी जी की है। ये प्रतिमाएँ चटकीले नारंगी / गेरुए रंग से रंगे हुए हैं। इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर का निर्माण 1973 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पहले के वास्तविक मंदिर समुद्र के जल सतह के बढ्ने से जल में समा गए है।
किवदंती-
1) ऐसा माना जाता है कि गंगासागर के इस स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था और मकर संक्रांति के दिन गंगा जी ने पृथ्वी पर अवतरित हो 60,000 सगर-पुत्रों कि आत्मा को मुक्ति प्रदान किया था।

 

ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। पर उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलतः उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे।
इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहाँ से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60,000 हज़ार पुत्रों को भेजा।
अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गए। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज़ हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज़ हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज़ से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागिरथ कपिल मुनि से माफी माँगने पहुँचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60,000 मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए इस पर स्नान का इतना महत्व है।
कहतें है कि भगवान इंद्रा ने यज्ञ अश्वों को जान-बुझ कर पाताल लोक में छुपा दिया था। बाद में कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। ऐसा उन्होने ने गंगा नदी को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए किया था। पहले गंगा स्वर्ग की नदी थीं। इंद्र जानते थे कि गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से अनेकों प्राणियों का भला होग।
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इस पवित्र तीर्थयात्रा से हम सभी लौट कर पास में त्रिय योग आश्रम गाए। यह उड़ीसा के जगन्नाथपूरी मंदिर के तर्ज़ पर कृष्ण सुभद्रा और बलराम का मंदिर है। साथ ही शिवलिंग भी स्थापित है। यहाँ हमें शुद्ध और सात्विक भोजन मिला। जिससे बड़ी तृप्ति मिली। इसके बाद हम रात ९ बजे तक कोलकाता वापस लौट आए। इस तरह से हमने एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा पूरी की। जिससे बड़ी आत्म संतुष्टी मिली। कहा जाता है –

                                        सब तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार।