शैली और परियाँ
शैली मम्मी के धीर-गंभीर चेहरे को देख सोंच में पड़ गई। इधर कुछ दिनों से टीचर उसेसे नाराज़ दिख रहीं थीं। कभी गृह कार्य पूरा करने कहती रहतीं थीं। कभी उसकी लिखावट में कमियाँ निकालतीं। आनेवाले परीक्षा के लिए अच्छे से पढ़ाई करने कहती रहती। न-जाने इतनी छोटी-छोटी बातों के पीछे टीचर क्यों पड़ी थी। फिर तो मैम ने हद ही कर दिया। ना जाने उसकी स्कूल-डायरी में क्या लिख दिया। मम्मी भागी-भागी उनसे मिलने गई।टीचर से बात कर मम्मी शैली से थोड़ी नाराज़ दिखी।
वैसे तो उसकी टीचर बड़ी अच्छी हैं। बड़े प्यार से पढ़ाती और बातें करती। जब वे प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बातें करती तब शैली को बड़ा अच्छा लगता। उनकी बोली बड़ी मीठी और प्यारी है। कहानियाँ तो वे इतने अच्छे से सुनातीं, लगता जैसे कहानियों के दुनियाँ में हीं पहुँच गए हों। सभी बच्चे उनसे प्यार करते थे। उसे भी अपनी मैम बड़ी प्यारी लगती थीं। पर आज उसे उन पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। उन्होंने मम्मी से उसकी शिकायत जो की थी।
टीचर को उसने मम्मी से कहते सुना था- शैली बहुत तेज़ और होशियार है। पर बड़ी बातुनी है। सारा समय गप्प करती रहती है। फिर जल्दीबाजी में काम पूरा करती है। इसलिए बहुत भूलें करती है और लिखावट भी खराब हो जाती है। शैली ने मन ही मन सोचा- बात तो टीचर ने सही कही है। पर मम्मी से शिकायत करने की क्या ज़रूरत थी? दोस्तों से गप्पें करने में उसे बहुत मज़ा आता था।
पिछले परीक्षा में जब उसे कम अंक आए थे तब मम्मी बड़ी हैरान हुईं थीं, क्योंकि सारे प्रश्न उन्होंने उसे पढ़ाये थे। फिर भी शैली ने आधे उत्तर नहीं दिये थे और गलतियाँ भी की थीं। शैली ने डर से मम्मी को बताया ही नहीं था कि उसे अपनी सहेली को उत्तर बताने में काफी समय लगा दिया था। इसलिए उसके पास समय कम बचा था।
शैली ने मम्मी का नाराज़ चेहरा गौर से देखा। उसे डर लगा। मम्मी नाराज़ होने पर उससे बात करना बंद कर देती हैं। तब उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। इसलिए उसने मम्मी को बातों से बहलाने की कोशिश की। वह मम्मी को स्कूल की बातें बताने लगी। पर मम्मी ने कुछ जवाब नहीं दिया। तब शैली ने मम्मी से बताया। कल मैम ने परियों की कहानी सुनाई थी। जिसमें परियाँ अच्छे बच्चों को टाफ़ियाँ और उपहार देतीं थीं। फिर उसने मम्मी से पूछा – मम्मी क्या सच में परियाँ होती हैं? जानती हो मम्मी मैंने कल रात में सपने में परियों को देखा था। उनके हाथों में टाफ़ियाँ थी। पर वे मेरे पास नहीं आई। उन्हों ने मुझे टाफ़ियाँ भी नहीं दी। उसने मम्मी की ओर देखा। मम्मी के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी। शैली ने राहत महसूस किया। लगता है अब मम्मी नाराज़ नहीं है।
मम्मी ने गौर से उसे देखा। प्यार से उसके बिखरे बालों को ठीक किया और कहा- हाँ, पारियाँ तो होती है। अच्छे बच्चों को इनाम भी देती है। मैं जब छोटी थी। तब जब भी अच्छे से पढ़ती-लिखती थी तब मुझे कही न कहीं टाफ़ियाँ पड़ी मिलती थीं। जरूर वे पारियाँ ही देती होंगी। तुम्हारी मैम ने सही कहा है। तुम भी कोशिश कर सकती हो।
शैली के मन में हलचल होने लगी। उसने निश्चय किया। आज से वह भी पारियों से इनाम पाने की कोशिश करेगी। घर पहुँच कर उसने अपना बस्ता, जूता, स्कूल-ड्रेस सभी सामान जगह पर रखे। हाथ-मुँह धो कर अपने से खाना खाने लगी। दरअसल वह मैम और मम्मी के सिखाये हर अच्छी बात को पूरा कर परियों को खुश करना चाहती थी। थोड़ी देर बाद अपना स्कूल बस्ता खोल कर गृह कार्य करने लगी। उसने सुंदर और साफ लिखावट में सारा काम पूरा किया। तभी मम्मी ने दूध का ग्लास दिया। मम्मी उससे बहुत खुश थीं। यह मम्मी के चेहरे से ही लग रहा था। पर शैली परेशान थी। अभी तक परियाँ उसके पास नहीं आईं थी। तभी मम्मी ने कहा- शैली, अच्छे बच्चे अपने सामान बिखेरतें नहीं है। शैली जल्दी से अपने कापी-किताब समेटने लगी। जैसे हीं वह कापी – किताब बैग में डालने लगी, उसे बैग में कुछ चमकता हुआ नज़र आया। उसने हाथ अंदर डाला। अरे ! इसमें तो टाफ़ियाँ हैं। वह खुशी से चिल्ला पड़ी- मम्मी, देखो परियों ने मुझे टाफ़ियाँ दी है। शैली का चेहरा खुशी से चमकने लगा। वह मुँह में टाफी डालते हुए खेलने चली गई।
अब वह हर दिन अपना सारा काम और पढ़ाई समझदारी से करने लगी। हर दिन उसे कुछ न कुछ उपहार मिलने लगा। कभी किताबों के बीच, कभी पेंसिल डब्बे में, कभी तकिये के नीचे से टाफ़ियाँ, नए पेंसिल-रबर, सुंदर चित्रों वाली किताबें मिलती। उसे बड़ा मज़ा आने लगा।
परीक्षा हो गए। रिजल्ट आया तब वह हैरान रह गई। उसे विश्वाश ही नहीं हो रहा था। वह कक्षा में प्रथम आई थी। उसने मन ही मन परियों को धन्यवाद दिया। यह परियों का दिया सबसे बड़ा उपहार था।
मम्मी-पापा, उसकी टीचर सभी उससे बहुत खुश थे। रात में सोते समय उसने मम्मी से कहा – मम्मी परियों की वजह से मैं कक्षा में प्रथम आई। पर मम्मी वे मुझे कभी नज़र क्यों नहीं आती हैं? मम्मी ने हँस कर कहा – बेटा, तुम कक्षा में अपनी मेहनत और समझदारी के कारण प्रथम आई हो, क्योंकि तुम अच्छे बच्चों की तरह हर दिन मन से पढाई करने लगी। तुमने अपनी लिखावट भी सुधार ली। यह उसका ही परिणाम है। परियों ने तुम्हें प्रथम नहीं कराया है। शैली ने हैरानी से पूछा- फिर मुझे टाफ़ियाँ और उपहार कौन देता था? मम्मी ने उसके आगे अपनी मुट्ठी खोली। उसमे वही टाफ़ियाँ भरी थीं। शैली चौंक कर बोल पड़ी – अच्छा, तो मेरी परी तुम हो? मम्मी ने मुस्कुरा कर कहा- बेटा, सभी बच्चों में योग्यता होती है। पर वे मेहनत नहीं करते है। जब तुमने पारियों के सपने की बात बताई। तब मैंने उसका उपयोग कर तुम्हें प्रेरित करने का निश्चय किया। मैंने तुम्हें परियों के उपहार के रूप में इनाम दे कर तुम्हारा हौसला बढ़ाया। तुम जब इनाम पाने की कोशिश में हर दिन मेहनत करने लगी तब तुम्हें उसका नतीजा मिला। अब तो तुम यह अच्छी तरह समझ गई होगी कि अपनी योग्यता का सही उपयोग करने के लिए स्वयं मेहनत करना जरूरी है। मम्मी की बात सुनकर शैली के चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान खेलने लगी।
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यह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। अगर पुरस्कार और सज़ा का इस्तेमाल बच्चों पर साकारात्मक तरीके से किया जाए, तब इसके लाजवाब परिणाम सामने आते हैं। यह कहानी वास्तव में कहानी नहीं, बल्कि अपने बच्चों के ऊपर आजमाए हुए अद्भुत सकारात्मक बाल मनोविज्ञान के उपयोग का उदाहरण है।




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