
कहते हैं हम इंसान तरक़्क़ी कर रहें हैं.
आगे बढ़ रहें हैं.
पर जा कहाँ रहें हैं?
ना इंसानों, ना बच्चों, ना पशुओं
किसी के बारे में नहीं सोंच रहें हैं.
अफ़सोस !!!!
क्रूरता की इंतहा है.

कहते हैं हम इंसान तरक़्क़ी कर रहें हैं.
आगे बढ़ रहें हैं.
पर जा कहाँ रहें हैं?
ना इंसानों, ना बच्चों, ना पशुओं
किसी के बारे में नहीं सोंच रहें हैं.
अफ़सोस !!!!
क्रूरता की इंतहा है.