(आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले गुरु पूर्णिमा का प्रसिद्ध पावन पर्व, जो वेद व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है ( 31 जुलाई 2015))
महाभारत के महान रचयिता वेदव्यास थे । जिन्हें श्याम या कृष्ण रंग होने और द्वैपायन द्वीप पर तपस्या करने के कारण कृष्ण द्वयपायन के नाम से जाना जाता है।वेदों का भाष्य करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा गया। वे महाभारत काल के युग पुरुष थे। उन्हों ने पूरे महाभारत के घटना क्रम को देखा और लिखा है। उनके जन्म की कथा अनोखी है।
किवदंती के अनुसार, निषाद पुत्री मत्स्यगंधा यमुना नदी पर नाव चला कर पथिकों को पार पहुंचाती थी । उसके शरीर से मछली की महक आते रहने के कारण उसे मत्स्यगंधा पुकारा जाता था।
आषाढ़ पूर्णिमा अर्थात गुरु पूर्णिमा के शुभ दिन पराशर मुनि उसकी नाव से यमुना पार कर रहे थे । सुंदरी मत्यगंधा पर वे मोहित हो गए।रूप आसक्त मुनि ने उससे संबंध स्थापित करना चाहा। उसे झिझकते देख त्रिकालदर्शी , ब्रह्मज्ञानी, दिव्य दृष्टि और ईश्वरांश मुनि ने आश्वासन दिया कि इस संबंध से और उससे उत्पन्न संतान से उसका कौमार्य खंडित नहीं होगा। वह कुमारी ही रहेगी।
अपने तपबल और माया से उन्हों नौका के चारों ओर कुहरे का झीना आवरण फैला दिया। फलतः किनारे खड़े लोगों को कुछ नज़र नहीं आया। मत्स्यगंधा और उनके संबंध से वेदव्यास का जन्म तत्काल हुआ। जो जन्म से वेद वेदांगों में पारंगत थे।
पराशर मुनि अपने पुत्र को अपने साथ ले कर चले गए। जाने से पहले मत्स्यगंध के मत्स्य गंध को सुगंध में बदल दिया। जो योजन तक फैलने लगी । जिस से वह योजनगंधा कहलाई और आगे चल कर सत्यवती नाम से जानी जाने लगी। कुछ समय बाद भीष्म के पिता राजा शांतनु ने योजनगंधा के रूप और सुगंध से प्रभावित हो कर उस से विवाह कर लिया।