
क्या यह ख़तरे की घंटी नहीं है?
प्रदूषण , प्रकृतिक से छेड़-छाड
इस सीमा तक पहुँच गई है मानव इतिहास में.
कहीं हम सब ही इतिहास ना बन जायें .

क्या यह ख़तरे की घंटी नहीं है?
प्रदूषण , प्रकृतिक से छेड़-छाड
इस सीमा तक पहुँच गई है मानव इतिहास में.
कहीं हम सब ही इतिहास ना बन जायें .