आज (20.3.2015) के अख़बार ‘दी इंडियन एक्स्प्रेस’ के पृष्ठ दो पर एक खबर पढ़ने को मिली – “ भगवान जगन्नाथ की अंतिम पत्नी की मृत्यु”। शशिमणी देवी, अंतिम जीवित महरि की मृत्यु 93 वर्ष के उम्र में हो गई। उनके माता-पिता ने 7 वर्ष की आयु में साड़ी बंधन समारोह के द्वारा उनका विवाह भगवान जगन्नाथ से कर दिया था।
महरि उन देवदासियों को बुलाया जाता है, जो ओडिशा के भगवान जगन्नाथ के मंदिर में नृत्यप्रस्तुत करती थीं। महरि नृत्य लगभग एक सहस्राब्दी पुराना है। बारहवीं सदी में गंगा शासकों ने देवता के लिए इस नए समारोह की शुरुआत की थी। फिर यह जगन्नाथ मंदिर में दैनिक अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। अनेक परिवार के लोग अपनी पुत्रियों की शादी बचपन में भगवान जगन्नाथ के साथ कर देते थे। ये देवदासियां आजीवन इस मंदिर से जुड़ी रहतीं थीं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को खुश करने के लिए जयदेव के गीत गोविन्द पर महरि नृत्य प्रस्तुत किया जाता था। नर्तकियों को विशेष गहने, विशेष रूप से बुनी साड़ी और फूलों से सजाया जाता था।
स्वतंत्र भारत में देवदासी प्रणाली के उन्मूलन के बाद यह नृत्य जगन्नाथ मंदिर में बंद कर दिया गया। अब महरि नृत्य को ओडिसी के शास्त्रीय नृत्य रूप में एक सम्मानजनक दर्जा दे दिया गया है। यह मंच पर नृयांगनाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ।