किताब-ए-ज़िंदगी
का पहला सबक़ सीखा।
रिश्तों को निभाने के लिए,
अपनों की गिलाओ पर ख़ामोशी के
सोने का मुल्लमा चढ़ना अच्छा है।
पर अनमोल सबक़ उसके बाद के
पन्नों पर मिला –
सोने के पानी चढ़ाने से पहले
देखो तो सही…
ज़र्फ़….सहनशीलता तुम्हारी,
कहीं तुम्हें हीं ग़लत इल्ज़ामों के
घेरे में ना खड़ा कर दे.
