दिनांक – 10.2.2015, बुधवार। समय दोपहर – 12:30 यह मंदिर भारत सरकार द्वारा सुरक्षित प्राचीन स्मारक है। यहाँ पत्थरों पर अनेक रचनाएँ / आकृतियाँ प्राचीन समय की हैं। यहाँ के पुजारी के अनुसार यह गुप्त कामाख्या के रूप में भी जाना जाता है। यह गौहाटी शहर के उत्तर में, ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित है। सड़क के किनारे कुछ पूजा सामग्री की दुकाने हैं। वहीं से मंदिर की सीढ़ियाँ शुरू होती है। थोड़ा ऊपर जाने पर बाईं ओर चट्टान पर गणेश जी विशाल प्रतिमा बनी है। जो सिंदूर आरक्त है। बगल में चट्टान पर विशाल पीपल वृक्ष है। मंदिर में आने-जाने के लिए अन्य सीढ़ियां भी बनी है। मंदिर तक की सीढ़ियों को चढ़ने के दौरान अनेकों प्रतिमाएँ चट्टानों पर बनी दिखती हैं। मंदिर परिसर में माँ के पद चिन्ह बने है।जहां पुष्प और सिंदूर चढ़ाये जाते है। इस मंदिर का निर्माण राजा स्वर्गदेव शिव सिंह ने 1714 से 1744 में करवाया था। इस वंश के बाद के राजाओं ने भी इसकी देखभाल की। तत्कालीन राजाओं ने यह जानकारी एक पत्थर पर अंकित करवाया था। जो आज भी मंदिर के पीछे के द्वार पर उपलब्ध है। यह मंदिर पथरीली पहाड़ी के ऊपर है। यहाँ दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े धूम-धाम से होता है तथा भैंसे की बलि दी जाती है। मंदिर के अंदर जाने के लिया सीढ़ियों से अंदर उतरना पड़ता है। ये सीढ़ियाँ एक छोटी अंधकरमय गुफा में ले जातीं हैं। यह प्रकृतिक रूप से बनी गुफा है। यह मंदिर का गर्भगृह है। जहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते है। उसकी रोशनी में मंदिर के एक कोने में बैठे पुजारी पूजा-अर्चना करवाते हैं। पुजारी जी से पूछने पर उन्होने वहाँ से जुड़ी दिलचस्प कहानी सुनाई। किवदंतियाँ – 1) ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर मार्कन्डेय मुनि का आश्रम हुआ करता था। मंदिर के गर्भगृह में उन्होने माँ दुर्गा की आराधना की। माँ ने इस गर्भगृह में उन्हे दर्शन दिया था। यहीं पर उन्होने मार्कन्डेय पुराण की रचना की थी। 2) इस मंदिर को भी शक्तिपीठ कहा गया है। इस स्थान को गुप्त कामाख्या भी कहते है। ऐसा कहा जाता है कि कामाख्या माँ के दर्शन के बाद यहाँ दर्शन लाभदायक होता है।गौहाटी में कामाख्या मंदिर के बाद दीर्घेस्वरी मंदिर को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि यहाँ भी सती के कुछ अंग गिरे थे ।