
कहते हैं,
शादियाँ बिकने लगीं हैं।
जब देखने वाले ख़रीदार बैठे है,
ज़रूर बिकेंगी।
टिकें या ना टिकें,
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
नई हुईं फिर बिकेंगी।
शादियों में, दिखावे के
बाज़ार बिकेंगे।
नई-नई अदायें बिकेंगी।
शो बिज़नेस की दुनिया है।
सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग,
सादा जीवन उच्च विचार
का नहीं है बाज़ार।
ग़र हो निहारने वाली हुजूम,
तो क्या ग़म है?
शादियाँ बिकेंगी।
You must be logged in to post a comment.