वैधनाथ धाम या बाबधाम – (ज्योतिर्लिंग ५)

देवताओं का घर, देवघर बैद्यनाथ ज्योसतिर्लिंग, झारखंड में है। यह सिद्धपीठ है “कामना लिंग” भी कहलाता हैं। प्रायः सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दिखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण आदि सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। यहाँ महाशिवरात्री और श्रावण माह में विशेष पूजन होता  है।

विशेष पूजा, काँवर पद यात्रा– यहाँ पवित्र श्रावण मास में गंगा जलार्पण का विशेष महत्व है। श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल पात्रों में भर काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की कठिन पद यात्रा करते हैं। यह दूरी लगभग १०५ किलोमीटर है। जिसे नंगे पैर चल कर पूरा किया जाता है। पवित्र जल पात्र व काँवर को कहीं भी भूमि पर नहीं रखा जाता है। मंदिर पहुँच कर इस जल से ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया जाता है।

मान्यता  है कि शिव के गले में लिपटे रहने वाले वासुकीनाथ की पूजा शिव को प्रसन्नता प्रदान करती है। अतः ज्योतिर्लिंग पूजन के बाद देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के शिव मन्दिर स्थित वासुकीनाथ का  दर्शन-पूजन अवश्य करना चाहिए। जनश्रुति व लोकमान्यता है कि यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है। इसलिए इसे कामना लिंग भी कहतें हैं।

किवदंती

किवदंती है कि महान शिव भक्त, राक्षसराज रावण ने हिमालय पर्वत पर घोर तपस्या की। अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना  शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर काटने ही वाला था। तभी शिवजी प्रसन्न हो प्रकट हुए। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने कहा।

रावण ने लंका में उन्हे स्थापित करने की आज्ञा चाही। शिवजी ने उसे एक शिवलिंग दे कर कहा, वह जहां भी इसे पृथ्वी पर रखेगा, शिव वहाँ वास करेंगे। प्रसन्न, मुदित रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला। ईश्वर इच्छा, मार्ग में उसे लघुशंका की आवश्यकता हुई। वह शिवलिंग एक चरवाहे को थमा लघुशंका-निवृत्ति होने गया।

रावण को देर होते देख चरवाहा शिवलिंग भूमि पर रख चला गया। वापस आ कर रावण पूरी शक्ति लगा कर भी शिवलिंग को उखाड़ नहीं सका। क्रोध और निराशावश शिवलिंग को अपना अँगूठे से नीचे धंसा दिया। आज भी इस शिवलिंग का छोटा हिस्सा हीं धरती से ऊपर है। फिर सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की स्थापना उसी स्थान पर कर दी। जनश्रुति के अनुसार वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है अतः भगवान शिव ने जानबुझ कर ऐसी परिस्थिति बना दी कि राक्षस राज रावण शिवलिंग लंका नहीं ले जा सके।

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।