ज़िंदगी मुझे
आज़माने की ज़िद ना कर।
तु इतनी ख़ूबसूरत है
कि
बन गई है जुनून मेरी।
तु वह आग है जो
जलाती है
और सिखाती भी है।
ज़िंदगी मुझे
आज़माने की ज़िद ना कर।
तु इतनी ख़ूबसूरत है
कि
बन गई है जुनून मेरी।
तु वह आग है जो
जलाती है
और सिखाती भी है।
ईश्वर-नियन्ता पत्थरों की मुर्तियोँ में नहीं बसते।
हमारे विचारों मे बसते हैं।
अौर मन-आत्मा-दिल
वह मंदिर- मस्जिद -चर्च
वह पूजा स्थल हैं….
जहाँ ये विचार उपजते हैं।