
ख़ाक में, राख़ में लिपटे,
शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का
संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।
कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।
ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।
फिर किस बात का अभिमान साधो ?
#TopicYoyrQuote

ख़ाक में, राख़ में लिपटे,
शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का
संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।
कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।
ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।
फिर किस बात का अभिमान साधो ?
#TopicYoyrQuote
एक दिन देखा शिव का चिता, भस्मपूजन उज्जैन महाकाल में बंद आंखों से ।
समझ नहीं आया इतना डर क्यों वहां से जहां से यह भभूत आता हैं।
कहते हैं, श्मशान से चिता भस्म लाने की परम्परा थी।
पूरी सृष्टि इसी राख में परिवर्तित होनी है एक दिन।
एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन होनी है।
वहीं अंत है, जहां शिव बसते हैं।
शायद यही याद दिलाने के लिए शिव सदैव सृष्टि सार,
इसी भस्म को धारण किए रहते हैं।
फिर इस ख़ाक … राख के उद्गम, श्मशान से इतना भय क्यों?
कोलाहल भरी जिंदगी से ज्यादा चैन और शांति तो वहां है।

भस्मपूजन उज्जैन महाकाल में बंद आंखों से – वहाँ उपस्थित होने पर भी यह पूजन देखा महिलाओं के लिए वर्जित है.
यह बयार गजब ढातीं हैं
कभी बुझती राख की चिंगारी को हवा दे
आग बना देतीं है।
दिल आ जाये तो , खेल-खेल में
जलते रौशन दीप अौ शमा बुझ देती है
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