
वह मुकम्मल जहाँ नहीं,
किसी के लिए।
जहाँ हँसी से ज़्यादा
आँसू हों।
खिलखिलाहटों से ज़्यादा
दर्द हो।
सुकून से ज़्यादा
ठोकरें हो।

वह मुकम्मल जहाँ नहीं,
किसी के लिए।
जहाँ हँसी से ज़्यादा
आँसू हों।
खिलखिलाहटों से ज़्यादा
दर्द हो।
सुकून से ज़्यादा
ठोकरें हो।
तराशते रहें ख़्वाबों को,
कतरते रहे अरमानों को.
काटते-छाँटते रहें ख़्वाहिशों को.
जब अक़्स पूरा हुआ,
मुकम्मल हुईं तमन्नाएँ,
साथ और हाथ छूट चुका था.
सच है …..
सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
किसी को जमीं,
किसी को आसमाँ नहीं मिलता.