उखड़ा-उखड़ा नाराज़ मौसम
बिखरी बेचैन हवाएँ
सर पटकती सी .
कभी-कभी अपनी सी लगने लगतीं हैं.

उखड़ा-उखड़ा नाराज़ मौसम
बिखरी बेचैन हवाएँ
सर पटकती सी .
कभी-कभी अपनी सी लगने लगतीं हैं.

बेचैन लहरें किनारे पर सर पटकती,
कह रहीं हैं – ये सफेद झाग, ये खूबसूरत बुलबुले
बस कुछ पल के लिये हैं।
जिंदगी की तरह……
बीत रहे वक्त अौ लम्हे को…..
जी लो जी भर के।
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