बिगड़ी बातों को बनाना ,
नाराज़गी को संभालना,
तभी होता हैं जब
बिगाड़ने या नाराज़ होने वाला चाहे .
यह छोटी पर गूढ़ बात
बड़ी देर से समझ आई….
कि एक हाथ से ताली नहीं बजती.
बिगड़ी बातों को बनाना ,
नाराज़गी को संभालना,
तभी होता हैं जब
बिगाड़ने या नाराज़ होने वाला चाहे .
यह छोटी पर गूढ़ बात
बड़ी देर से समझ आई….
कि एक हाथ से ताली नहीं बजती.