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धृष्ट चाँद
पूनम का धृष्ट चाँद बिना पूछे,
बादलों के खुले वातायन से
अपनी चाँदनी को बड़े अधिकार से
सागर पर बिखेर गगन में मुस्कुरा पड़ा .
सागर की लहरों पर बिखर चाँदनी
सागर को अपने पास बुलाने लगी.
लहरें ऊँचाइयों को छूने की कोशिश में
ज्वार बन तट पर सर पटकने लगे .
पर हमेशा की तरह यह मिलन भी
अधूरा रह गया.
थका चाँद पीला पड़ गया .
चाँदनी लुप्त हो गई .
सागर शांत हो गया .
पूर्णिमा की रात बीत चुकी थी .
पूरब से सूरज झाँकने लगा था .