
पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।

पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।