खुशबू ने सीखाया बिखरना,
चाँद ने खामोशी।
खुद से गुफ्तगू करना सीखाया निर्झर ने,
ख्वाहिशों ने सीखाया सज़्दा – इबादत करना।
तनहाई, अकेलेपन ने फरियाद, शिकवा
पर
दुनिया के भीङ में भटकते- भटकते भूल जाते हैं सारे तालीम
शायद रियाज़ों की कमी है।
खुशबू ने सीखाया बिखरना,
चाँद ने खामोशी।
खुद से गुफ्तगू करना सीखाया निर्झर ने,
ख्वाहिशों ने सीखाया सज़्दा – इबादत करना।
तनहाई, अकेलेपन ने फरियाद, शिकवा
पर
दुनिया के भीङ में भटकते- भटकते भूल जाते हैं सारे तालीम
शायद रियाज़ों की कमी है।

इधर उधर बिखरे शब्दोँ को बटोरकर
उनमें दिल के एहसास और
जीवन के कुछ मृदु कटु अनुभव डाल
बनती है सुनहरी
काव्यमय कविता ……
कभी तो यह दिल के बेहद करीब होती है
सुकून भरी …मीठी मीठी निर्झर सी ….
और कभी जब यह पसंद नहीं आती
मिटे पन्नों में कहीं दफन हो जाती है -ऐसी कविता !
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