महाकालेश्वर उज्जैन (ज्योतिर्लिंग 3 )

तीसरा ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर है। यह क्षिप्रा नदी के किनारे, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। प्राचीन ग्रन्थों में उज्जैन को उज्जयिनी तथा अवन्तिकापुरी के नाम से भी जाना जाता है। श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग रुद्रसागर ताल के बगल में स्थित है। उज्जैन में प्रत्येक बारह वर्ष पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव को अत्यन्त सिद्ध और तांत्रिक महत्व का माना जाता है।

इस ज्योतितिर्लिंग की एक और विशेषत है।यहाँ प्रात:काल की पूजा में अनिवार्य रूप से सवा मन श्मशान के चिता भस्म द्वारा अभिषेक किया जाता है। इस भस्म आरती में सम्मिलित होना पुण्यदायी माना जाता है। इसके लिए विशेष टिकट की व्यवस्था है।

पौराणिक कथा

1 शिव पुराणनानुसार, भगवान ब्रह्मा और विष्णु में कौन श्रेष्ठ है, यह जानने के लिए उज्जैन में शिव जी ने विशाल ज्योति का अंतहीन स्तंभ बना दिया और भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को दो दिशाओं में प्रकाश के अंत को खोजने के लिए भेजा। विष्णु ने हार स्वीकार कर ली पर ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया। शिव ने नाराज़ ब्रह्माजी को को शाप दिया कि पूजा विधानों में उनका स्थान नहीं रहेगा।। ऐसी मान्यता है कि शिव द्वारा स्थापित ज्योती स्तंभ स्थान पर उज्जैन में ज्योतिर्लिंग स्थापित है।

2 दूसरी किवदंती एक शिव भक्त ब्राह्मण और उसके चार पुत्रों के बारे में है। जो इस स्थान पर सर्वदा पिनाकी या शिव के पार्थिव लिंग की पूजा करते थे। शिव ने साक्षात प्रकट हो कर दूषण नामक असुर से इस परिवार की रक्षा की। उन्हें महाकाल शिव ने हमेशा अपने वहाँ विराजमान होने का वर दिया। इस प्रकार यह भगवान शिव की स्थली बन गई और भगवान शिव महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

3 तीसरी कथानुसार, उज्जयिनी नगरी में महान शिवभक्त चन्द्रसेन नामक एक राजा थे। शिवजी के पार्षद, मणिभद्र जी उन्हें महामणि कौस्तुभ मणि प्रदान किया। सूर्य के समान देदीप्यमान, मंगल प्रदान करनेवाली मणी को पाने के लालच में सभी पड़ोसी राजाओं ने उज्जयिनी पर हमला कर दिया। पर उज्जयिनी के एक छोटे से बालक में भी शिव भक्ती की गहराई देख उन्होने शत्रुता त्याग मित्रता कर लिया। भगवान महेश्वर की कृपा पाने के लिए उन्होंने भी वहाँ महाकालेश्वर का पूजन किया।

मान्यता है कि, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से स्वप्न में भी किसी प्रकार का दुःख अथवा संकट नहीं आता है। जो कोई भी मनुष्य सच्चे मन से महाकालेश्वर लिंग की उपासना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और वह परलोक में मोक्षपद को प्राप्त करता है-

महाकालेश्वरो नाम शिवः ख्यातश्च भूतले।
तं दुष्ट्वा न भवेत् स्वप्ने किंचिददुःखमपि द्विजाः।।
यं यं काममपेदयैव तल्लिगं भजते तु यः ।
तं तं काममवाप्नेति लभेन्मोक्षं परत्र च।।

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।
शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।