जिंदगी है या बोनसाई ?
मुट्ठी भर माटी में
लहलहाना है,
बढ़ना भी है।
हरे भी रहना है, खङे भी रहना है।
बङी अज़ीब सी है यह जिंदगी।
जिंदगी है या बोनसाई ?
मुट्ठी भर माटी में
लहलहाना है,
बढ़ना भी है।
हरे भी रहना है, खङे भी रहना है।
बङी अज़ीब सी है यह जिंदगी।
इन परिंदों की उङान देख,
चहचहाना सुन ,
रश्क होता है।
कितने आज़ाद हैं……
ना बंधन, ना फिक्र कि …….
कौन सुनेगा ….क्या कहेगा…….
बस है खुली दुनिया अौर आजाद जिंदगी।