जीवन की शाम हो चली थी,
थका-हारा सूरज झुका,
थोङा रुका
….गुफ्तगु के इरादे से या
शायद फिर से आने का
वायदा करना चाहता था धरा से।
पर तभी छा गये बीच में काले बादल।
अौर बिना रुके…..
बिना कुछ कहे सूरज ङूब गया,
कभी नहीं वापस आने को।
जीवन की शाम हो चली थी,
थका-हारा सूरज झुका,
थोङा रुका
….गुफ्तगु के इरादे से या
शायद फिर से आने का
वायदा करना चाहता था धरा से।
पर तभी छा गये बीच में काले बादल।
अौर बिना रुके…..
बिना कुछ कहे सूरज ङूब गया,
कभी नहीं वापस आने को।