
तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।

तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।