जागती रातों में, उनिंदी आँखों से ,
चाँद पकड़ने की कोशिश में ,
सूरज सामने आ जाता है ,
और फिर सूरज पकड़ने की कोशिश में चाँद .
रात- दिन ढलते रहते हैं और हाथ कुछ नहीं आता .
तब समझ आया – कुछ भी पकड़ने की कोशिश बेकार है .
ज़िंदगी के हर आते जाते धूप-छांव और रंगों को
ज़िंदादिली से जीना हीं ज़िंदगी है !!!!

Image courtesy – Chandni Sahay.


Perfect 👌👌👌
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Thank you Nimish.
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ये जीवन है, इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंगरूप ।
थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ; यही है, यही है, यही है छाँव धूप ।
ये ना सोचो, इसमें अपनी हार है कि जीत है ।
उसे अपना लो जो भी जीवन की रीत है ।
ये जिद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो, हर पल इक दर्पण है ।
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जी, बिलकुल सही। आभार !!!!
पर ईश्वर ने मन, दिल, आत्मा,भावनाएँ….. ना जाने इंसान के अंदर क्या-क्या भर दिया है। उलझने परेशान करती हैं। कभी सब सुलझा लगता है।
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ज़िंदादिली से जीना हीं ज़िंदगी है….👍
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Thank you 😊
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बहुत खूब
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आभार !!!!
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मैं कुछ ऐसा करूँ की
मैं कुछ भी ना ख़ुद करूँ
और कुछ करने को बाक़ी भी ना रह जाए!
सच्च! ज़िंदगी एक पहली सी लगती है
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बिलकुल ! यह ज़िंदगी एक पहेली हीं है
कभी सुलझ जाती है और कभी उलझा जाती है .
ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए आभार .
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चाँद पकड़ने की कोशिश में ,
सूरज सामने आ जाता है ,
और फिर सूरज पकड़ने की कोशिश में चाँद .:
वाह क्या बात कही है!
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आभार नीरज,
परेशानी में जागते रहने पर लगता है कब सवेरा हो? अौर सवेरा होने पर नींद अौर थकान से लगता है जल्दी रात हो। बस इतनी सी बात है।
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