जागती रातों में …


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जागती रातों में, उनिंदी आँखों से ,

चाँद पकड़ने की कोशिश में ,

सूरज सामने आ जाता है ,

और फिर सूरज पकड़ने की कोशिश में चाँद .

रात- दिन ढलते रहते हैं और हाथ कुछ नहीं आता .

तब समझ आया – कुछ भी पकड़ने की कोशिश बेकार है .

ज़िंदगी के हर आते जाते धूप-छांव और रंगों को

ज़िंदादिली से जीना हीं ज़िंदगी है !!!!

Image courtesy – Chandni Sahay.

12 thoughts on “जागती रातों में …

  1. ये जीवन है, इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंगरूप ।
    थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ; यही है, यही है, यही है छाँव धूप ।
    ये ना सोचो, इसमें अपनी हार है कि जीत है ।
    उसे अपना लो जो भी जीवन की रीत है ।
    ये जिद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो, हर पल इक दर्पण है ।

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    1. जी, बिलकुल सही। आभार !!!!
      पर ईश्वर ने मन, दिल, आत्मा,भावनाएँ….. ना जाने इंसान के अंदर क्या-क्या भर दिया है। उलझने परेशान करती हैं। कभी सब सुलझा लगता है।

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  2. मैं कुछ ऐसा करूँ की
    मैं कुछ भी ना ख़ुद करूँ
    और कुछ करने को बाक़ी भी ना रह जाए!

    सच्च! ज़िंदगी एक पहली सी लगती है

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    1. बिलकुल ! यह ज़िंदगी एक पहेली हीं है
      कभी सुलझ जाती है और कभी उलझा जाती है .
      ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए आभार .

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  3. चाँद पकड़ने की कोशिश में ,

    सूरज सामने आ जाता है ,

    और फिर सूरज पकड़ने की कोशिश में चाँद .:

    वाह क्या बात कही है!

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    1. आभार नीरज,
      परेशानी में जागते रहने पर लगता है कब सवेरा हो? अौर सवेरा होने पर नींद अौर थकान से लगता है जल्दी रात हो। बस इतनी सी बात है।

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