हिज्र

आई होगी किसी को हिज्र में मौत

मुझ को तो नींद भी नहीं आती


~अकबर इलाहाबादी.

हिज्र – विछोह।

5 thoughts on “हिज्र

  1. मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती I
    आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हंसी, अब किसी बात पर नहीं आती I

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    1. बहुत ख़ूब जितेंद्र जी. शुक्रिया!!!
      अपने को सम्भालने की कोशिश में
      अक्सर सब कुछ बेसंभाल हो जाता है .
      
कोई उम्मीद बर नहीं आती 
कोई सूरत नज़र नहीं आती……
      मिर्ज़ा ग़ालिब  

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