जिंदगी के रंग – 98

चाँद चुराया

अरमानों को पूरा करने के लिए .

कई रातों की नींद अौर

साज़िश ख़्वाबों की

पूरी  नहीं होने दीं।

ज़ुबा बया करती रही अपने ज़ज़्बात।

पर……….

तेज़ बयार चली और अरमानों  का चाँद

छुप गया बादलों के आग़ोश में.

आवाज़ बिखर गई

टूटे काँच की किरचियों की तरह,

साथ हीं बिखर गए अरमानों के टुटे टुकड़े।

 

 

2 thoughts on “जिंदगी के रंग – 98

  1. मर मरकर सहेजा था,
    कई रातें जागता,फरेब करता,
    ख्वाहिशों को हकीकत
    करता रहा,
    मगर हवा का एक झोंका आया,
    लोग देखते रहे उस काया को
    मगर जो दौड़ता था वो
    कहीं चला गया,
    ये कैसा जिंदगी का रंग।

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    1. बहुत ख़ूब मधुसूदन!!! सब अरमान पूरे नहीं होते . ज़िंदगी कई रंग दिखाती है, यह रंग भी उन में से एक है.

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