आज हीं कहीं यह पढ़ा और सलाह कुछ अधूरी सी लगी इसलिए कुछ पंक्तियाँ जोड़ दी-
लम्हे फुर्सत के आएं तो, रंजिशें भुला देना दोस्तों,
किसी को नहीं खबर कि सांसों की मोहलत कहाँ तक है ॥
नई पंक्तियाँ
अच्छा हो रंजिशे पैदा करनेवाली आदतों को भुला देना ,
किसी को पता नहीं ये आदतें कहाँ तक चुभन पहुँचाएगी .
ना रंजिशे होंगी ना भुलाने की ज़रूरत .
ज़िंदगी और साँसों के मोहलत की गिनती की भी नहीं ज़रूरत.

khubsurat pankyiya aur satya satya kathan.
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Aabhaar Madhusudan.
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