साथ

दूरियाँ कितनी भी हो, बातें हो ना हों ,

पर साथ ऐसा भी होता है कि

कुछ पूछना ना पङे……….

हाल पता हो…..

क्योंकि

साथ रहते रहते, साथ छूटते देखा है।

46 thoughts on “साथ

  1. *जिंदगी तुझसे हर कदम पर समझोता क्यों किया जाए,*

    *शौक जीने का है, मगर इतना भी नहीं कि मर मर कर जिया जाए।*

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  2. साथ रहते हुए साथ छूटते देखा है…काफी गहरा भाव है…👌

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  3. “बहुत बार लोग साथ रहते हुए भी साथ नहीं होते।” —-बिल्कुल सही कहा आपने। बहुत खूब।

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  4. आपने सच में बहुत अच्छा लिखा है रेखा दी। क्या सम्भव हैं कि किसी से बिना पूछे ही उसके बारे में हमें पता चल जाये।

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  5. आप सत्य कहती है दी खुशनसीब हैं वो कान्हा जिन्हें राधा जी मिली।

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      1. आपका आपके विचारों का सदैव स्वागत है। हमने अपनी रचना “आप सबको समर्पित” में कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित की थी यदि आपको याद हो। हमने कहा था ना कि आप ही की रचनाओं को पढ़कर हमें प्रेरणा मिली की हम कुछ लिखे।

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