हमदर्द – कविता

अपने दर्द में ङूब, हमदर्द खोजा
जवाब मिला –
सब हैरान बहुत हैं…….
अगर कोई मिले, हमारा घर भी दिखा देना।
हम भी परेशान बहुत है।

22 thoughts on “हमदर्द – कविता

  1. *बहुत ग़जब का नज़ारा है इस अजीब सी दुनिया का,*
    *लोग सबकुछ बटोरने में लगे हैं खाली हाथ जाने के लिये..*

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  2. रेखा जी सच में आप बहुत ही शानदार कविताऐ लिखती हैं। ईश्वर से यही कामना है की आप ऐसे ही लिखते रहें ।

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    1. बहुत शुक्रिया अौर आभार प्रशंसा अौर शुभकामनाअों के लिये. इन से हौसला बढ़ता है। 🙂

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  3. This is specialty of Rekha ji . She know how to play with words and convey a deep truth in few word 😍😍😍👍🏻👍🏻👍🏻👌🏻👌🏻👌🏻

    Amazing one 👍🏻

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