जिंदगी के रंग ( 2) कविता

चलते -चलते लड़खड़ा गये क़दम,
तभी सहारे के लिये बढ़ आये नाजुक हाथ,
हैरानी से देखा,
ये तो वही हाथ हैं,
जिन्हे कभी मैंने पकड़ कर चलना सिखाया था,
सचमुच, जिंदगी रोज़ नये रंग दिखाती हैं हमें.

 

Source: जिंदगी के रंग ( 2) कविता

46 thoughts on “जिंदगी के रंग ( 2) कविता

Leave a reply to PoojaG Cancel reply